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VBSPU B.Ed 3rd Semester | Creating an Inclusive School 2023 Question Solution

VBSPU B-Ed 3rd SEMESTER CREATING AN INCLUSIVE SCHOOL QUESTION PAPER SOLUTION

VBSPU B.Ed 3rd Semester “Creating an Inclusive School” 2023 Previous Year Question Paper with complete solutions. B.Ed PYQ, notes और important questions

TOPIC VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER PREVIOUS YEAR QUESTION PAPER SOLUTION
UNIVERSITY VEER BAHDUR SINGH PURVANCHAL UNIVERSITY (VBSPU) , JAUNPUR
SEMESTER 3rd
PAPER  PAPER-1 CREATING INCLUSIVE EDUCATION
OFFICIAL WEBSITE https://www.vbspu.ac.in/en
OTHER WEBSITE AB JANKARI
NEW EXAM DATE 22-12-2025
RESULT  NO NEWS —–

 

VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER CREATING INCLUSIVE EDUCATION 2023 PREVIOUS YEAR QUESTION PAPER




B.Ed. (Third Semester)
Examination, 2023
Paper : First (301)
(Creating Inclusive Education)
Time : Three Hours ]
[ Maximum Marks: 90
Note: Attempt questions from all sections as per instructions.
सभी खण्डों से निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

 

Section – A / खण्ड-अ
(Very Short Answer Type Questions)
(अति लघु उत्तरीय प्रश्न)
Note: Attempt all parts of this question in about 50 words.
नोट : इस खण्ड के सभी भागों के उत्तर लगभग 50 शब्दों में दीजिए। 2×10 = 20

(1) (i) What is Remedial Education?
उपचारात्मक शिक्षा क्या है?

(ii) Write down four aims of Inclusive education.
समावेशी शिक्षा के चार उद्देश्य लिखिए।

(iii) What is integrated Education?
एकीकृत शिक्षा क्या है?

(iv) Define gifted children.
प्रतिभासम्पन्न बालकों को परिभाषित कीजिए ।

(v) What do you mean by inclusive Education?
समावेशी शिक्षा से आप क्या समझते हैं?

(vi) Write down four Characteristics of Mentally Re-tarded Children.
मंद बुद्धि बालक की चार विशेषताएं लिखिए ।

(vii) What is the role of teacher in inclusive Education?
समावेशी शिक्षा में अध्यापक की क्या भूमिका है?

(viii) Define Intelligence Quetient (I.Q.).
बुद्धि लब्धि को परिभाषित कीजिए ।

(ix) What is Cerebral Palsy ?
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात क्या है?

(x) What is Autism ?
स्वलीनता क्या है?

Section-B / खण्ड-ब
(Short Answer Type Questions)
(लघु उत्तरीय प्रश्न)

Note: Attempt All questions. Give answer of each question in about 200 words.

नोट : सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए। 8×5= 40

2.What is the role of technology in inclusion?
समावेशन में तकनीकी का क्या योगदान है?
OR / अथवा
How many types of Special children are there? Describe them.
विशिष्ट बालक कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन कीजिए ।

3. What is learning disability?
अधिगम असमर्थता क्या है?
OR / अथवा
Write down characteristics of mentally Retarded Children.
मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की विशेषताएं लिखिए।

4. Describe the role of teacher for gifted Children.
प्रतिभावान बालकों के लिए अध्यापक की भूमिका का वर्णन कीजिए।
OR / अथवा
What do you mean by co-curricular activities? Explain their importance.
पाठ्य सहगामी क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व का वर्णन कीजिए।

(5) Describe the skills and competencies of teacher.
“अध्यापक के कौशलों एवं दक्षताओं का वर्णन कीजिए।
OR / अथवा
Describe the main characteristics of Inclusive Education.
समावेशी शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

6. What is Integrated Education? Describe its reeds and characteristics?
एकीकृत शिक्षा किसे कहते हैं? इसकी आवश्यकताओं एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
OR / अथवा

प्रश्न – संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए

Section-C / खण्ड- स
(Long Answer Type Questions)
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

Note: Select any two from the following questions. Answer in about 500 words.
निम्नांकित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों का चयन करके उनके उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। 15 x 2 = 30

7. Describe the remedies and preventions of learning disable children.
अधिगम असमर्थ बालकों के उपचार तथा रोकथाम का वर्णन कीजिए ।

8. Describe in detail about Inclusive Education, Write down meaning & definitions of Special Education and Integrated Education Emotionally disturbed Children. in India.
संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का अर्थ एवं परिभाषाएं लिखिए। भारत में समावेशी शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा एवं एकीकृत शिक्षा का विस्तृत वर्णन कीजिए ।

9.Describe the effects of social attitude on inclusive Education.
समावेशी शिक्षा पर सामाजिक अभिवृत्ति का क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन कीजिए।

10. Describe the role of parents and teachers in Educational provisions of visually impaired childs.
दृष्टिबाधित बालकों के शैक्षिक प्रावधानों में माता-पिता एवं अध्यापकों की भूमिका का वर्णन कीजिए।

11. Describe the needs of Evaluation and Assessment in inclusive school.
समावेशी विद्यालय में ऑकलन एवं मूल्यांकन की आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।




 

VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER CREATING AN INCLUSIVE SCHOOL 2023 PREVIOUS YEAR QUESTION SOLUTION

(1)
Q (i) What is Remedial Education?
प्रश्न – उपचारात्मक शिक्षा क्या है?

उत्तर – उपचारात्मक शिक्षा (Remedial Education) वह विशेष शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कमजोर, पिछड़े या सीखने में कठिनाई महसूस करने वाले विद्यार्थियों को अतिरिक्त सहायता प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य उनकी शैक्षणिक कमियों को दूर करना, सीखने की गति को सुधारना तथा मूलभूत कौशलों को मजबूत करना है, ताकि वे सामान्य कक्षा की सीखने की प्रक्रिया के अनुरूप हो सकें।

Q (ii) Write down four aims of Inclusive education.
प्रश्न -समावेशी शिक्षा के चार उद्देश्य लिखिए।

उत्तर – समावेशी शिक्षा के मुख्य चार उद्देश्य हैं—

(1) सभी बच्चों को समान शिक्षण अवसर प्रदान करना, चाहे वे किसी भी सामाजिक, आर्थिक या शारीरिक पृष्ठभूमि से हों।

(2) विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य कक्षा में शामिल करना।

(3) भेदभाव-रहित वातावरण बनाना।

(4) सीखने में सहयोग, सहभागिता और प्रत्येक बच्चे की पूर्ण क्षमता के विकास को सुनिश्चित करना।

Q (iii) What is integrated Education?
प्रश्न – एकीकृत शिक्षा क्या है?

उत्तर – एकीकृत शिक्षा वह व्यवस्था है जिसमें सामान्य तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को एक ही कक्षा में साथ-साथ शिक्षित किया जाता है। इसका उद्देश्य सभी बच्चों को समान अवसर देना, सामाजिक सहभागिता बढ़ाना तथा विशेष बच्चों की सीखने की जरूरतों को सामान्य कक्षा में ही पूरा करना है। यह शिक्षकों को विविध क्षमताओं के अनुरूप शिक्षण रणनीतियाँ अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

Q (iv) Define gifted children.
प्रश्न – प्रतिभासम्पन्न बालकों को परिभाषित कीजिए ।

उत्तर – प्रतिभासम्पन्न बालक वे होते हैं जिनमें सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक बौद्धिक क्षमता, रचनात्मकता, समस्या-समाधान कौशल तथा सीखने की तीव्र गति पाई जाती है। वे जटिल अवधारणाओं को जल्दी समझ लेते हैं, नई जानकारी को सहजता से ग्रहण करते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं। उनमें नेतृत्व कौशल और जिज्ञासा भी प्रबल होती है।

Q (v) What do you mean by inclusive Education?
प्रश्न – समावेशी शिक्षा से आप क्या समझते हैं?

उतर-  समावेशी शिक्षा वह शैक्षिक प्रक्रिया है जिसमें सभी प्रकार के बच्चे—सामान्य, विशेष आवश्यकता वाले, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित तथा भिन्न पृष्ठभूमि के विद्यार्थी—एक ही कक्षा में मिलकर सीखते हैं। इसका उद्देश्य समान अवसर, सहयोगपूर्ण वातावरण और बिना भेदभाव के सीखना सुनिश्चित करना है। यह प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रदान करती है।

 प्रश्न (VI) मंदबुद्धि बालक की चार विशेषताएँ 

उतर- मंदबुद्धि बालकों में सीखने की गति सामान्य बच्चों की तुलना में काफी धीमी होती है। उनकी स्मरण शक्ति कमजोर होती है और वे निर्देशों को समझने व पालन करने में कठिनाई महसूस करते हैं। सामाजिक समायोजन की क्षमता कम होती है तथा आत्मनिर्भरता के कौशल धीरे विकसित होते हैं। उनका मानसिक, शैक्षणिक और अनुकूलन व्यवहार सामान्य विकास से पीछे रहता है।

 प्रश्न (VII) समावेशी शिक्षा में अध्यापक की भूमिका 

उतर– समावेशी शिक्षा में अध्यापक की भूमिका सभी बच्चों को समान सीखने का अवसर प्रदान करना है। वह विविध क्षमताओं वाले विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त शिक्षण रणनीतियाँ अपनाता है, व्यक्तिगत सहायता देता है और कक्षा में सहयोगपूर्ण वातावरण बनाता है। शिक्षक भेदभाव को समाप्त कर सहानुभूति, सहभागिता और सम्मान की भावना विकसित करता है, जिससे प्रत्येक बच्चा अपनी क्षमता के अनुसार विकसित हो सके।

 प्रश्न (VIII) बुद्धि लब्धि (I.Q.) की परिभाषा 

उतर– बुद्धि लब्धि (Intelligence Quotient–I.Q.) व्यक्ति की मानसिक क्षमता को मापने का एक मानक सूचकांक है। इसे मानसिक आयु को वास्तविक आयु से विभाजित कर सौ से गुणा करके प्राप्त किया जाता है। I.Q. से यह पता चलता है कि व्यक्ति की समझ, तर्क, समस्या-समाधान और सीखने की क्षमता सामान्य स्तर की तुलना में किस स्थिति में है।

 प्रश्न (IX) प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy) 

उतर– प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात एक स्थायी न्यूरोलॉजिकल विकार है जो मस्तिष्क के असामान्य विकास या चोट के कारण होता है। इसमें बच्चे की मांसपेशियों पर नियंत्रण प्रभावित होता है, जिससे चलने-फिरने, संतुलन और समन्वय में कठिनाई होती है। यह प्रगति न करने वाला विकार है, परंतु उपचार, व्यायाम और थेरेपी से लक्षणों में सुधार लाया जा सकता है।

प्रश्न (X) स्वलीनता (Autism)

उतर– स्वलीनता एक विकासात्मक विकार है जिसमें बच्चे को सामाजिक संचार, भाषा एवं व्यवहार में कठिनाई होती है। वे दूसरों से संपर्क बनाने, आँख मिलाने और भाव व्यक्त करने में संकोच महसूस करते हैं। दोहराव वाले व्यवहार, सीमित रुचियाँ और संवेदनशील प्रतिक्रियाएँ आम होती हैं। शीघ्र पहचान, विशेष शिक्षण और थेरेपी से बच्चे के विकास में सुधार संभव है।




Q 2.What is the role of technology in inclusion?
प्रश्न – समावेशन में तकनीकी का क्या योगदान है?

उत्तर –

भूमिका
समावेशी शिक्षा का उद्देश्य है कि सभी प्रकार के विद्यार्थियों—चाहे वे सामाजिक, भाषाई, मानसिक, शारीरिक या आर्थिक रूप से भिन्न हों—को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो। आधुनिक युग में तकनीक इस लक्ष्य को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में उभरकर सामने आई है। तकनीक न केवल शिक्षण को सरल बनाती है, बल्कि विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए सीखने की बाधाओं को भी कम करती है।

समावेशन में तकनीकी का योगदान-
समावेशन में तकनीकी का सबसे बड़ा योगदान सहायक उपकरणों (Assistive Technologies) के रूप में है। स्क्रीन रीडर, स्पीच-टू-टेक्स्ट, ब्रेल डिस्प्ले, श्रवण यंत्र और विशेष सॉफ्टवेयर दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित तथा शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को सीखने में सक्षम बनाते हैं। स्मार्ट क्लास, डिजिटल कंटेंट, वीडियो लेक्चर, शिक्षण ऐप और ई-बुक्स जैसे साधन विद्यार्थियों को विभिन्न तरीकों से सीखने का अवसर देते हैं, जिससे प्रत्येक छात्र अपनी क्षमता और गति के अनुसार सीख सकता है।

इसके अलावा, तकनीक व्यक्तिगत अधिगम (Personalized Learning) को मजबूत करती है। लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (LMS) शिक्षक को प्रत्येक विद्यार्थी की प्रगति पर नजर रखने और उसके अनुरूप गतिविधियाँ देने में मदद करता है। तकनीक सहयोगात्मक सीखने वाले वातावरण को भी बढ़ावा देती है, जहाँ विद्यार्थी गेम-बेस्ड लर्निंग, वर्चुअल लैब्स और इंटरएक्टिव टूल्स से अधिक प्रभावी ढंग से सीखते हैं।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, तकनीक समावेशन को साकार करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह शिक्षा में समानता, सुगमता और गुणवत्ता को बढ़ाती है तथा प्रत्येक विद्यार्थी को अपनी क्षमता के अनुरूप सीखने का अवसर प्रदान करती है। इस प्रकार तकनीक समावेशी शिक्षा को सफल बनाने में निर्णायक भूमिका निभाती है।

OR / अथवा

Q. How many types of Special children are there? Describe them.
प्रश्न – विशिष्ट बालक कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन कीजिए ।

उत्तर –

भूमिका
शिक्षा के क्षेत्र में ‘विशिष्ट बालक’ उन विद्यार्थियों को कहा जाता है जो सामान्य बच्चों से किसी न किसी रूप में भिन्न होते हैं तथा जिन्हें विशेष शिक्षण सुविधाओं, संसाधनों और सहायक वातावरण की आवश्यकता होती है। इन बच्चों की पहचान करना और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षण प्रदान करना समावेशी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। विशिष्ट बालकों को कई प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है ताकि उनके विकास और अधिगम को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

विशिष्ट बालकों को मुख्यतः निम्न प्रकारों में विभाजित किया जाता है—

  1. दृष्टि-बाधित बालक – ये बच्चे पूर्णतः अंधे या अल्पदृष्टि वाले होते हैं। इन्हें ब्रेल, ऑडियो सामग्री और स्पर्श आधारित शिक्षण की आवश्यकता होती है।

  2. श्रवण-बाधित बालक – ऐसे बच्चे सुनने में कठिनाई अनुभव करते हैं। इनके लिए हियरिंग एड, सांकेतिक भाषा और दृश्य तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

  3. मानसिक रूप से मंद या प्रगतिशील बालक – कुछ बच्चों की बुद्धि सामान्य से कम होती है, जबकि कुछ अत्यधिक प्रतिभाशाली होते हैं। दोनों को अलग प्रकार के शिक्षण सहयोग की आवश्यकता होती है।

  4. शारीरिक दिव्यांग बालक – ये बच्चे चलने, उठने-बैठने या मोटर गतिविधियों में कठिनाई का सामना करते हैं और इन्हें सहायक उपकरणों व बाधामुक्त वातावरण की जरूरत होती है।

  5. सीखने में कठिनाई वाले बालक (LD) – जैसे डिस्लेक्सिया, डिस्ग्राफिया, डिस्कैलकुलिया; इन बच्चों को विशेष शिक्षण रणनीतियों की मदद चाहिए।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, विशिष्ट बालक विभिन्न प्रकार की क्षमताओं और चुनौतियों वाले होते हैं। उचित पहचान, विशेष शिक्षण विधियाँ, सहायक साधन और संवेदनशील वातावरण उन्हें उनकी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने में मदद करते हैं। यही समावेशी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी है।

Q 3. What is learning disability?
प्रश्न – अधिगम असमर्थता क्या है?

भूमिका
शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्येक विद्यार्थी की सीखने की गति, क्षमता और समझ अलग-अलग होती है। लेकिन कुछ बच्चों को पढ़ने, लिखने, गणना करने या सूचनाओं को समझने में निरंतर कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जबकि उनकी बुद्धि सामान्य होती है। ऐसी स्थिति को अधिगम असमर्थता (Learning Disability) कहा जाता है। यह कोई मानसिक मंदता या बीमारी नहीं है, बल्कि मस्तिष्क की सूचना प्रसंस्करण प्रक्रिया में आने वाली विशेष कठिनाई है।


अधिगम असमर्थता के कई रूप होते हैं।

  1. डिस्लेक्सिया – पढ़ने और शब्द पहचानने में कठिनाई।

  2. डिस्ग्राफिया – लिखावट, वर्तनी और लेखन अभिव्यक्ति में समस्या।

  3. डिस्कैलकुलिया – संख्याओं की समझ और गणितीय क्रियाओं में कठिनाई।

  4. एडीएचडी (ADHD) – ध्यान केंद्रित करने में कमी, अतिसक्रियता या आवेगशील व्यवहार।

इन बच्चों की बुद्धि सामान्य या उससे अधिक होती है, परंतु इनके मस्तिष्क में भाषा, स्मृति या प्रोसेसिंग से संबंधित कार्यों में असामान्य कठिनाई होती है। यही कारण है कि सामान्य शिक्षण तकनीकों से ये बच्चे अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते। ऐसे बच्चों को विशेष शिक्षण विधियों, बहु-संवेदी (Multisensory) तरीकों, अतिरिक्त समय, और व्यक्तिगत सहयोग की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, अधिगम असमर्थता एक विशिष्ट शिक्षण चुनौती है, बीमारी नहीं। उचित पहचान, संवेदनशीलता, सहयोगात्मक शिक्षण और उपयुक्त शैक्षणिक रणनीतियाँ अपनाकर इन बच्चों को सफल सीखने की दिशा में समर्थ बनाया जा सकता है। समावेशी शिक्षा इसी उद्देश्य को साकार करती है।

OR / अथवा
Q. Write down characteristics of mentally Retarded Children.
प्रश्न – मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की विशेषताएं लिखिए।

भूमिका
मानसिक रूप से पिछड़ा बालक वह होता है जिसकी बौद्धिक क्षमता सामान्य बच्चों की तुलना में कम होती है और जिसे सीखने, समझने, अनुकूलन करने तथा दैनिक कार्यों को पूरा करने में विभिन्न स्तरों की कठिनाइयाँ आती हैं। यह स्थिति जन्मजात या विकास प्रक्रिया में किसी कारण उत्पन्न हो सकती है। ऐसे बच्चों की पहचान और उनकी विशेषताओं को समझना उनके उचित शिक्षण एवं विकास के लिए आवश्यक है।


मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. बौद्धिक क्षमता में कमी – ऐसे बच्चों का I.Q. सामान्य से कम होता है, जिसके कारण उन्हें नए कार्य सीखने या अवधारणाओं को समझने में अधिक समय लगता है।

  2. सीखने की गति धीमी – वे सरल निर्देशों को भी बार-बार दोहराने पर समझ पाते हैं। जटिल विषयों को समझने और याद रखने में कठिनाई होती है।

  3. सामाजिक एवं अनुकूलन कौशल की कमी – आत्म-देखभाल, सामाजिक व्यवहार, निर्णय लेने और जिम्मेदारी निभाने जैसे कौशलों में कमजोरी दिखाई देती है।

  4. भाषा और संप्रेषण में कठिनाई – ऐसे बच्चों की भाषा विकास गति से होता है, जिससे वाक्यों का निर्माण, शब्दों का उच्चारण और अपनी बात स्पष्ट कहना चुनौतीपूर्ण होता है।

  5. मोटर कौशल में कमजोरी – चलने, दौड़ने, पकड़ने जैसे कार्यों में सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक कमजोरी देखी जा सकती है।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, मानसिक रूप से पिछड़े बालकों में सीखने और व्यवहार से संबंधित अनेक कठिनाइयाँ होती हैं, परंतु उचित देखभाल, विशेष शिक्षण, सहायक वातावरण और संवेदनशीलता के माध्यम से उन्हें बेहतर जीवन और शिक्षा का अवसर प्रदान किया जा सकता है। समावेशी शिक्षा इसी सोच को प्रोत्साहित करती है।

Q. 4. Describe the role of teacher for gifted Children.

प्रश्न – प्रतिभावान बालकों के लिए अध्यापक की भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर –

भूमिका
कक्षा में कुछ विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनकी बौद्धिक क्षमता, रचनात्मकता, विश्लेषणात्मक सोच और सीखने की गति सामान्य विद्यार्थियों की तुलना में अधिक होती है। ऐसे विद्यार्थियों को प्रतिभावान बालक कहा जाता है। इन बालकों के समुचित विकास के लिए एक कुशल, संवेदनशील और प्रेरक शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इन्हें सामान्य शिक्षण पद्धतियाँ पर्याप्त चुनौती नहीं दे पातीं।

प्रतिभावान बालकों के लिए अध्यापक की भूमिका-
प्रतिभावान बालकों के लिए शिक्षक की भूमिका बहुआयामी होती है।
पहला, अध्यापक को इन बालकों की पहचान परीक्षणों, व्यवहार अवलोकन और कक्षा गतिविधियों के माध्यम से करनी चाहिए, ताकि उन्हें उचित अवसर मिल सके। दूसरा, शिक्षक को समृद्ध और विविध शिक्षण सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए, जिसमें उच्च स्तर की समस्याएँ, परियोजनाएँ, अतिरिक्त पठन सामग्री और रचनात्मक गतिविधियाँ शामिल हों।

तीसरा, शिक्षक को उनकी रचनात्मकता और स्वतंत्र चिंतन को प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसे—ओपन-एंडेड प्रश्न पूछना, बहस, प्रस्तुतीकरण, शोध कार्य आदि करवाना। चौथा, शिक्षक उन्हें नेतृत्व के छोटे-छोटे अवसर प्रदान कर सकता है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इसके अतिरिक्त, शिक्षक को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रतिभावान बालक घमंड, एकाकीपन या मानसिक दबाव का शिकार न हों।

OR / अथवा
Q. What do you mean by co-curricular activities? Explain their importance.
प्रश्न – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर –

भूमिका
विद्यालयी शिक्षा केवल पाठ्य पुस्तकों के ज्ञान तक सीमित नहीं होती। विद्यार्थियों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए ऐसी गतिविधियों की आवश्यकता होती है जो उनकी रुचियों, क्षमताओं और रचनात्मकता को विकसित करें। ऐसी ही गतिविधियों को पाठ्य सहगामी क्रियाएँ (Co-curricular Activities) कहा जाता है। ये कक्षा शिक्षण के साथ-साथ चलने वाली क्रियाएँ हैं जो विद्यार्थियों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करती हैं।

पाठ्य सहगामी क्रिया- 
पाठ्य सहगामी क्रियाएँ विविध प्रकार की होती हैं, जैसे—खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, वाद-विवाद, चित्रकला, क्विज़, योग, स्काउट-गाइड, विज्ञान मेले, नाटक, संगीत, नृत्य आदि।

पाठ्य सहगामी क्रिया का महत्व-

इनका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के बहुआयामी विकास को प्रोत्साहित करना होता है। इन क्रियाओं का महत्व अनेक रूपों में दिखाई देता है। पहला, ये शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन को बढ़ावा देती हैं। दूसरा, विद्यार्थियों में नेतृत्व क्षमता, सहयोग भावना और टीम वर्क का विकास होता है।
तीसरा, ये आत्मविश्वास, संचार कौशल और रचनात्मकता को बढ़ाती हैं, जो जीवन में सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक गुण हैं।
चौथा, पाठ्य सहगामी गतिविधियाँ विद्यार्थियों को तनाव कम करने, रुचियाँ विकसित करने और सामाजिक मूल्यों को समझने में सहायता करती हैं। साथ ही, यह कक्षा शिक्षण को अधिक जीवंत और व्यावहारिक बनाती हैं।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। ये न केवल शैक्षणिक प्रगति में सहायक होती हैं, बल्कि विद्यार्थियों को जीवन कौशल, सामाजिक मूल्यों और व्यवहारिक ज्ञान से भी समृद्ध करती हैं। इसलिए विद्यालय में इनका समुचित आयोजन अत्यंत आवश्यक है।

Q. (5) Describe the skills and competencies of teacher.
प्रश्न -अध्यापक के कौशलों एवं दक्षताओं का वर्णन कीजिए।

भूमिका
शिक्षक किसी भी शिक्षा प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ होता है। उसकी ज्ञानसंपन्नता, व्यक्तित्व, व्यवहार तथा शिक्षण कौशल विद्यार्थियों के विकास को गहराई से प्रभावित करते हैं। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अध्यापक से केवल विषय-ज्ञान ही नहीं, बल्कि अनेक प्रकार के कौशलों और दक्षताओं की अपेक्षा की जाती है, ताकि वह कक्षा को प्रभावी, रोचक और शिक्षार्थी-केंद्रित बना सके।


अध्यापक के प्रमुख कौशलों और दक्षताओं को निम्न रूप में समझा जा सकता है—

  1. शैक्षणिक कौशल (Pedagogical Skills) – प्रभावी पाठ योजना बनाना, शिक्षण विधियों का चयन, कक्षा प्रबंधन, प्रश्न पूछने की कला, छात्रों की अधिगम शैली के अनुसार शिक्षण करना आदि।

  2. विषय-ज्ञान दक्षता – शिक्षक को अपने विषय का गहरा, अद्यतन और व्यापक ज्ञान होना आवश्यक है, ताकि वह विद्यार्थियों के प्रश्नों का समाधान कर सके।

  3. संचार कौशल – स्पष्ट भाषा, सही उच्चारण, उपयुक्त भाव-भंगिमा और प्रभावी अभिव्यक्ति शिक्षक की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

  4. मूल्यांकन कौशल – विभिन्न मूल्यांकन तकनीकों का उपयोग कर विद्यार्थियों की सीखने की प्रगति मापना, उनकी कमजोरियों की पहचान और फीडबैक देना।

  5. व्यक्तित्व एवं सामाजिक दक्षता – धैर्य, सहानुभूति, नेतृत्व क्षमता, सहयोग भावना तथा संवेदनशीलता शिक्षक के लिए अनिवार्य गुण हैं।

  6. तकनीकी दक्षता – डिजिटल उपकरणों, स्मार्ट कक्षा, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म आदि का प्रभावी उपयोग करना।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, एक सफल शिक्षक वही है जिसमें शैक्षणिक, सामाजिक, तकनीकी और संचार संबंधी सभी आवश्यक कौशल मौजूद हों। ऐसे शिक्षक ही विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास को दिशा देकर शिक्षा की गुणवत्ता को सशक्त बनाते हैं।

OR / अथवा

Q. Describe the main characteristics of Inclusive Education.
प्रश्न – समावेशी शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर –

भूमिका
समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) आधुनिक शिक्षा प्रणाली का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका उद्देश्य सभी प्रकार के विद्यार्थियों—सामान्य, दिव्यांग, सामाजिक रूप से वंचित, प्रतिभावान या किसी भी भिन्नता वाले—को एक ही शैक्षणिक वातावरण में समान अवसर प्रदान करना है। यह शिक्षा न केवल समानता को बढ़ावा देती है, बल्कि विविधता का सम्मान और सहयोगपूर्ण माहौल तैयार करती है।

समावेशी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  1. समान अवसर (Equal Opportunity) – सभी बच्चों को बिना भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है।

  2. विविधता का सम्मान (Respect for Diversity) – प्रत्येक विद्यार्थी की भिन्न क्षमताओं, रुचियों और पृष्ठभूमि को सकारात्मक रूप में स्वीकार किया जाता है।

  3. विशेष सहायता एवं सहायक तकनीक – विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए ब्रेल, हियरिंग एड, रैम, सहायक सॉफ्टवेयर आदि प्रदान किए जाते हैं ताकि वे सहजता से सीख सकें।

  4. लचीली शिक्षण पद्धतियाँ – कक्षा में विभिन्न शिक्षण विधियाँ, मल्टीमीडिया, समूह गतिविधियाँ और व्यक्तिगत अधिगम रणनीतियाँ उपयोग की जाती हैं।

  5. सहयोगात्मक वातावरण (Collaborative Environment) – शिक्षक, अभिभावक, समुदाय और सहपाठी मिलकर बच्चों के विकास में योगदान देते हैं।

  6. शिक्षकों का संवेदनशील दृष्टिकोण – शिक्षक प्रत्येक बच्चे को महत्व देते हैं और उसके अनुरूप सहयोग प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ शिक्षा को अधिक मानवीय, समानतामूलक और प्रभावी बनाती हैं। यह प्रत्येक बच्चे को उसकी क्षमता के अनुसार सीखने और विकसित होने का अवसर देती है, जिससे समग्र और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता है।

Q. 6. What is Integrated Education? Describe its reeds and characteristics?

प्रश्न – एकीकृत शिक्षा किसे कहते हैं? इसकी आवश्यकताओं एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर –

भूमिका
शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक विद्यार्थी को उसके स्तर एवं क्षमता के अनुसार सीखने का अवसर प्रदान करना है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए एकीकृत शिक्षा (Integrated Education) की अवधारणा विकसित हुई है। यह व्यवस्था सामान्य और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को एक ही विद्यालय में शिक्षित करने पर आधारित है, जहाँ विशेष बच्चों को अतिरिक्त सहायता उपलब्ध कराई जाती है ताकि वे सामान्य कक्षा के वातावरण में सीख सकें।

एकीकृत शिक्षा-
एकीकृत शिक्षा वह व्यवस्था है जिसमें दिव्यांग या विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य विद्यालयों में पढ़ाया जाता है, किंतु उन्हें उनकी आवश्यकताओं के अनुसार विशेष शिक्षण-सामग्री, संसाधन और समर्थन उपलब्ध कराया जाता है।

एकीकृत शिक्षा आवश्यकताएँ – 

  1. बाधारहित वातावरण – रैंप, ब्रेल संकेत, उपयुक्त बैठने की व्यवस्था आदि।

  2. सहायक उपकरण – हियरिंग एड, ब्रेल पुस्तकें, स्पीच डिवाइस आदि।

  3. विशेष शिक्षकों की उपलब्धता – जो बच्चों की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार सहयोग दे सकें।

  4. संवेदनशील शिक्षक और सहपाठी – समावेशी दृष्टिकोण अपनाने हेतु।

एकीकृत शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ हैं—

  • सामान्य कक्षा में अध्ययन, परंतु व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति।

  • व्यक्तिगत और विशेष शिक्षण योजनाओं (IEP) का उपयोग।

  • सहायक तकनीक, परामर्श और विशेष सहायता का प्रावधान।

  • सामाजिक समायोजन और आत्मविश्वास में वृद्धि।

निष्कर्ष-
निष्कर्षतः, एकीकृत शिक्षा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को मुख्यधारा शिक्षा से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। इससे उन्हें समान अवसर, सामाजिक स्वीकृति और बेहतर विकास का वातावरण मिलता है, जिससे शिक्षा अधिक मानवीय और न्यायसंगत बनती है।

OR / अथवा

प्रश्न – संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए
उत्तर –

भूमिका
विद्यालय में कई विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो अत्यधिक भावनात्मक उतार–चढ़ाव, असंतुलित व्यवहार, क्रोध, भय, उदासी या सामाजिक असामंजस्य का अनुभव करते हैं। ऐसे बच्चे सामान्य परिस्थितियों में भी स्थिर व्यवहार नहीं दिखा पाते। इन्हें संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चे कहा जाता है। इनके व्यवहार को समझना और सही दिशा में मार्गदर्शन देना शिक्षक और अभिभावकों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का अर्थ-
संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का अर्थ यह है कि ऐसे बच्चे भावनाओं को नियंत्रित करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। वे छोटी-छोटी बातों पर अत्यधिक प्रतिक्रिया दे सकते हैं, जैसे—अत्यधिक रोना, चिढ़ना, आक्रामक होना या अत्यधिक चिंता करना।

संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चों का परिभाषाएँ इस प्रकार हैं—

  1. सामान्य अर्थ में – वह बच्चा जो सामान्य परिस्थितियों में अपनी भावनाओं को नियंत्रित न कर सके और जिसका व्यवहार सामाजिक अपेक्षाओं से भिन्न हो, उसे संवेगात्मक रूप से अशांत माना जाता है।

  2. शैक्षणिक परिभाषा – ऐसे बच्चे जो भावनात्मक असंतुलन के कारण शिक्षा, संबंधों और दैनिक गतिविधियों में कठिनाई अनुभव करें तथा जिनका व्यवहार लगातार असामान्य बना रहे।

  3. मनोवैज्ञानिक परिभाषा – ऐसे बच्चे जिनकी भावनाएँ अत्यधिक अस्थिर हों और जिनके व्यवहार में दीर्घकालिक चिंता, भय, अवसाद, आक्रामकता या आत्मविश्वास की कमी दिखाई दे, उन्हें संवेगात्मक रूप से अशांत कहा जाता है।

निष्कर्ष
निष्कर्षतः, संवेगात्मक रूप से अशांत बच्चे भावनात्मक नियंत्रण और व्यवहार समायोजन में कठिनाई का सामना करते हैं। संवेदनशील शिक्षण, परामर्श, सहयोग और सुरक्षित वातावरण प्रदान करके इन बच्चों को बेहतर मानसिक संतुलन और सकारात्मक जीवन-दृष्टि की ओर ले जाया जा सकता है।

Section-C / खण्ड- स
(Long Answer Type Questions)
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

Note: Select any two from the following questions. Answer in about 500 words.
निम्नांकित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों का चयन करके उनके उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। 15 x 2 = 30

Q 7. Describe the remedies and preventions of learning disable children.
प्रश्न- अधिगम असमर्थ बालकों के उपचार तथा रोकथाम का वर्णन कीजिए ।

उत्तर –
भूमिका

अधिगम असमर्थता (Learning Disability) ऐसे बच्चों की स्थिति है जिनकी सामान्य बुद्धि होने के बावजूद पढ़ने, लिखने, गणना करने, भाषा समझने, ध्यान केंद्रित करने या स्मृति से संबंधित कौशलों में निरंतर कठिनाई दिखाई देती है। अधिगम असमर्थता कोई बीमारी नहीं, बल्कि मस्तिष्क की सूचना प्रसंस्करण प्रक्रिया में उत्पन्न एक विशेष समस्या है। इसका समय पर निदान, उचित उपचार एवं रोकथाम अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा बच्चा आत्मविश्वास की कमी, शैक्षणिक पिछड़ापन तथा सामाजिक हीनभावना का शिकार हो सकता है।

1. अधिगम असमर्थ बालकों का उपचार

अधिगम असमर्थ बालकों के उपचार में बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाता है जिसमें शिक्षक, मनोवैज्ञानिक, अभिभावक और विशेष शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

(क) विशेष शिक्षण रणनीतियाँ

बहु-संवेदी पद्धति (Multisensory Approach): बच्चों को देखने, सुनने, बोलने और स्पर्श के माध्यम से सीखने में सहायता मिलती है।

फोनेटिक विधि: डिस्लेक्सिया वाले बच्चों के लिए ध्वन्यात्मक प्रशिक्षण अत्यंत प्रभावी होता है।

रिमेडियल टीचिंग: कमजोर क्षेत्रों की पहचान कर उनके लिए विशेष अभ्यास तैयार किए जाते हैं।

(ख) सहायक तकनीक (Assistive Technology)

टेक्स्ट-टू-स्पीच, स्पीच-टू-टेक्स्ट, ऑडियो बुक्स, स्मार्ट ऐप्स, बड़े अक्षरों वाले फॉन्ट आदि का उपयोग बच्चों के सीखने में सहायक होता है।

(ग) व्यवहारिक परामर्श (Behavioral Counseling)

ADHD या भावनात्मक कठिनाई वाले बच्चों को व्यवहार परामर्श दिया जाता है ताकि वे ध्यान केंद्रित करना, व्यवस्थित रहना और आत्म-नियंत्रण सीख सकें।

(घ) व्यक्तिगत शिक्षा योजना (IEP)

प्रत्येक बच्चे की आवश्यकता और क्षमता के अनुसार विशेष शिक्षण योजना बनाई जाती है, जिसमें लक्ष्य, रणनीतियाँ और अपेक्षित परिणाम निर्धारित रहते हैं।

(ङ) शिक्षक की भूमिका

शिक्षक धैर्यवान, संवेदनशील और उत्साहवर्धक होना चाहिए।

बच्चों को बार-बार अभ्यास, सरल भाषा, छोटे-छोटे कार्य और सकारात्मक फीडबैक देना चाहिए।

(च) अभिभावकों की भूमिका

घर पर नियमित अभ्यास, सहयोगपूर्ण वातावरण और दबाव-मुक्त पालन-पोषण आवश्यक है।

बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाना और उनकी रुचियों को प्रोत्साहित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

2. अधिगम असमर्थता की रोकथाम

(क) प्रारंभिक पहचान (Early Identification)

प्री-स्कूल स्तर से ही बोलने, सुनने, मोटर कौशल और भाषा विकास की निगरानी आवश्यक है।

कठिनाई दिखने पर तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करने से समस्या बढ़ने से पहले समाधान मिल जाता है।

(ख) प्रारंभिक हस्तक्षेप (Early Intervention)

उचित समय पर प्रदान की गई सहायता बच्चे के अधिगम को मजबूत बनाती है।

(ग) सुदृढ़ भाषा और संज्ञानात्मक वातावरण

बच्चों को कहानियाँ सुनाना, चित्र दिखाना, खेल-आधारित शिक्षा, पज़ल्स और वर्णमाला अभ्यास प्रभावी होते हैं।

(घ) पोषण और स्वास्थ्य का ध्यान

कुपोषण, कमी वाले पोषक तत्व, लंबे रोग या तनाव अधिगम क्षमता को कमजोर करते हैं।

(ङ) शिक्षक प्रशिक्षण

प्रशिक्षित शिक्षक अधिगम असमर्थता को पहचानकर सही रणनीतियाँ लागू कर सकते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः, अधिगम असमर्थता एक जटिल लेकिन उपचार योग्य स्थिति है। सही समय पर पहचान, बच्चे की जरूरतों के अनुसार शिक्षण, परामर्श, अभिभावक–शिक्षक सहयोग और सहायक तकनीक का उपयोग करने से ऐसे बच्चे सामान्य जीवन और शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। रोकथाम और उपचार दोनों ही शिक्षा व्यवस्था के लिए अनिवार्य हैं, क्योंकि अधिगम असमर्थ बालकों को उचित मार्गदर्शन देकर उन्हें आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सफल नागरिक बनाया जा सकता है।




Q 8. Describe in detail about Inclusive Education, Write down meaning & definitions of Special Education and Integrated Education Emotionally disturbed Children. in India.
प्रश्न- भारत में समावेशी शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा एवं एकीकृत शिक्षा का विस्तृत वर्णन कीजिए ।
उत्तर –

भूमिका

शिक्षा मानव जीवन के समग्र विकास का आधार है। आधुनिक युग में यह धारणा प्रबल हुई है कि प्रत्येक बालक, चाहे वह सामान्य हो या विशेष आवश्यकता वाला, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने का समान अधिकार रखता है। भारत में शिक्षा-व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत एवं सहभागी बनाने के लिए समय-समय पर विभिन्न शिक्षण अवधारणाएँ विकसित हुईं, जिनमें समावेशी शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा तथा एकीकृत शिक्षा प्रमुख हैं। इन तीनों का लक्ष्य विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उपयुक्त शिक्षण अवसर प्रदान करना है, किंतु इनके कार्य-रूप में स्पष्ट अंतर पाया जाता है।

1. समावेशी शिक्षा (Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा वह व्यवस्था है जिसमें सभी प्रकार के बच्चे—सामान्य, दिव्यांग, बहु-विकलांग, समाजिक या भाषिक विविधता वाले—एक ही विद्यालय में, समान वातावरण में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
मुख्य बिंदु—

  • विद्यालय की संरचना, शिक्षण-विधियाँ एवं पाठ्यक्रम बच्चों की विविध आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तित किए जाते हैं।

  • शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण, सहायक उपकरण तथा ICT आधारित शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।

  • भेदभाव, पृथक्करण और लेबलिंग का विरोध किया जाता है।

  • RTE Act 2009, RPWD Act 2016 और NEP 2020 समावेशी शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान करते हैं।

समावेशी शिक्षा का मूल उद्देश्य है—“किसी भी बच्चे को पीछे न छोड़ना।” यह सामाजिक समानता, सहयोग, सहानुभूति और सामुदायिक जीवन कौशलों को विकसित करती है।

2. विशिष्ट शिक्षा (Special Education)

विशिष्ट शिक्षा उन बच्चों के लिए है जिन्हें सामान्य विद्यालयों की तुलना में अधिक विशेष सहारा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चे दृष्टि-बाधित, श्रवण-बाधित, बौद्धिक रूप से अशक्त, ऑटिस्टिक या सीखने में अक्षम हो सकते हैं।
मुख्य विशेषताएँ—

  • शिक्षण अलग विशेष विद्यालयों में होता है।

  • शिक्षक विशेष प्रशिक्षित होते हैं।

  • थेरेपी, परामर्श, जीवन-कौशल, स्पीच थेरेपी, फिजियो थेरेपी आदि की विशेष सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।

  • पाठ्यक्रम व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार संशोधित किया जाता है।

विशिष्ट शिक्षा उन स्थितियों में उपयुक्त होती है जब बच्चे को अत्यधिक सहायता की आवश्यकता हो और वह अभी मुख्यधारा विद्यालय के अनुरूप न हो सके।

3. एकीकृत शिक्षा (Integrated Education)

एकीकृत शिक्षा समावेशी शिक्षा से कुछ भिन्न है। इसमें विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य विद्यालयों में तो प्रवेश दिया जाता है, परंतु विद्यालय पूरी तरह उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तित नहीं होता।
मुख्य बिंदु—

  • सामान्य कक्षा में पढ़ाई, लेकिन आवश्यकतानुसार Resource Room में विशेष मदद।

  • शिक्षण सामग्री केवल आवश्यकता-आधारित संशोधित की जाती है।

  • विद्यालय बच्चे के अनुरूप बदलने के बजाय, बच्चे को विद्यालय के वातावरण के अनुरूप ढालने का प्रयास अधिक करता है।

भारत में IEDC (Integrated Education for Disabled Children) कार्यक्रम के माध्यम से इस अवधारणा को प्रोत्साहित किया गया था।

निष्कर्ष

भारत की शिक्षा-व्यवस्था में समावेशी, विशिष्ट और एकीकृत शिक्षा तीनों ही अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं। विशिष्ट शिक्षा उन बच्चों के लिए लाभकारी है जिन्हें अलग विशेषज्ञ सेवाओं की आवश्यकता होती है। एकीकृत शिक्षा सामान्य विद्यालयों में विशेष बच्चों के लिए प्रारंभिक अवसर प्रदान करती है, किंतु यह पूर्ण रूप से सहायक नहीं बन पाती। दूसरी ओर समावेशी शिक्षा सबसे आधुनिक और मानवीय दृष्टिकोण है, जिसमें शिक्षा-संस्थाएँ स्वयं बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तित होती हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने स्पष्ट रूप से समावेशी शिक्षा को भविष्य की मुख्यधारा घोषित किया है, ताकि प्रत्येक बालक समान अधिकार, सम्मान और अवसर के साथ सीखने की प्रक्रिया में भाग ले सके।

 

Q 9.Describe the effects of social attitude on inclusive Education.
प्रश्न- समावेशी शिक्षा पर सामाजिक अभिवृत्ति का क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर –

भूमिका

शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बालक को उसके संपूर्ण व्यक्तित्व-विकास के अवसर प्रदान करना है। आधुनिक समय में “समावेशी शिक्षा” (Inclusive Education) इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी बच्चे—चाहे वे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भाषिक अथवा आर्थिक विविधताओं से जुड़े हों—समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें। समावेशी शिक्षा की सफलता केवल विद्यालय प्रबंधन, शिक्षकों या नीतियों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि समाज की सोच, दृष्टिकोण और व्यवहार भी इसके क्रियान्वयन को गहराई से प्रभावित करते हैं। अतः सामाजिक अभिवृत्ति समावेशी शिक्षा के लिए आधारभूत भूमिका निभाती है।

1. सामाजिक अभिवृत्ति का अर्थ

सामाजिक अभिवृत्ति (Social Attitude) से आशय समाज के लोगों के मन में किसी विषय के प्रति निर्मित धारणा, सोच, विश्वास, व्यवहार तथा प्रतिक्रियाओं से है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति समाज की सकारात्मक या नकारात्मक सोच सीधे-सीधे उनके शैक्षिक अवसरों पर प्रभाव डालती है।

2. समावेशी शिक्षा पर सामाजिक अभिवृत्ति के सकारात्मक प्रभाव

(क) स्वीकृति एवं सहयोग बढ़ना
जब समाज विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह स्वीकार करता है, तब समावेशी शिक्षा सहजता से लागू हो पाती है। अभिभावक, शिक्षक तथा समुदाय पूरे मन से समर्थन प्रदान करते हैं।

(ख) कलंक तथा भेदभाव में कमी
सकारात्मक सामाजिक सोच दिव्यांगता या कमजोरियों से जुड़े मिथकों को समाप्त करती है। इससे विद्यालय का वातावरण अधिक सम्मानजनक तथा सुरक्षित बनता है।

(ग) शिक्षण संसाधनों का विस्तार
सकारात्मक अभिवृत्ति वाले समुदाय स्वयं विद्यालयों को संसाधन, उपकरण, स्वयंसेवी सहायता और सामाजिक समर्थन उपलब्ध कराते हैं, जिससे समावेशी शिक्षा और प्रभावी बनती है।

(घ) सामुदायिक भागीदारी का विकास
समावेशी विद्यालय और समाज के बीच संवाद, जागरूकता कार्यक्रम, कार्यशालाएँ तथा माता-पिता की सहभागिता बढ़ती है। इससे बच्चों के लिए अनुकूल शिक्षण वातावरण तैयार होता है।

3. समावेशी शिक्षा पर नकारात्मक सामाजिक अभिवृत्ति के प्रभाव

(क) भेदभाव एवं पृथक्करण
यदि समाज विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को ‘अलग’, ‘अक्षम’ या ‘भार’ के रूप में देखता है, तो अभिभावक ऐसे बच्चों को विद्यालय भेजने में झिझक महसूस करते हैं, जिससे उनकी शिक्षा बाधित होती है।

(ख) विद्यालयों का नकारात्मक रवैया
सामाजिक स्तर पर नकारात्मक सोच विद्यालयों में भी दिखाई देती है। कई बार शिक्षक प्रशिक्षण के बावजूद ऐसे बच्चों को कक्षा में शामिल करने में अनिच्छा दिखाते हैं।

(ग) संसाधनों की कमी
यदि समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता कम हो, तो विद्यालयों को आवश्यक संसाधन, सहायक उपकरण और सहायक कर्मी उपलब्ध नहीं हो पाते।

(घ) आत्मविश्वास में कमी
नकारात्मक अभिवृत्ति से बच्चों में हीनभावना, सामाजिक अलगाव और आत्मविश्वास की कमी उत्पन्न होती है, जिससे उनकी शैक्षिक प्रगति बाधित होती है।

4. सकारात्मक अभिवृत्ति निर्माण के उपाय

  • जागरूकता कार्यक्रम एवं परामर्श

  • विद्यालय-समुदाय साझेदारी

  • मीडिया के माध्यम से सकारात्मक उदाहरणों का प्रचार

  • माता-पिता का संवेदनशील प्रशिक्षण

  • विद्यालयों में सह-अनुभूति, सम्मान और सहयोग की संस्कृति विकसित करना

निष्कर्ष

समावेशी शिक्षा केवल एक शैक्षिक व्यवस्था ही नहीं, बल्कि यह समाज की सोच को मानवीय, सहानुभूतिपूर्ण और लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया है। सकारात्मक सामाजिक अभिवृत्ति समावेशी शिक्षा को सशक्त बनाती है, जबकि नकारात्मक अभिवृत्ति उसके मार्ग में बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। अतः यह आवश्यक है कि समाज में जागरूकता, संवेदनशीलता, सह-अनुभूति और समानता की भावना विकसित की जाए। जब समाज विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सम्मानपूर्वक स्वीकार करेगा, तभी समावेशी शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य—“सभी के लिए शिक्षा”—पूर्णतः सफल हो सकेगा।

Q 10. Describe the role of parents and teachers in Educational provisions of visually impaired childs.
प्रश्न- दृष्टिबाधित बालकों के शैक्षिक प्रावधानों में माता-पिता एवं अध्यापकों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर –

भूमिका

दृष्टिबाधित (Visually Impaired) बालक शारीरिक रूप से दृष्टि की कमी से प्रभावित होते हैं, परंतु उनकी बुद्धि, भावनाएँ, अभिरुचियाँ और प्रतिभाएँ सामान्य बच्चों की तरह ही होती हैं। समावेशी शिक्षा के संदर्भ में दृष्टिबाधित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए उचित शैक्षिक प्रावधान, सहायक उपकरण, संसाधन और सहयोगी वातावरण की आवश्यकता होती है। इन व्यवस्थाओं को प्रभावी बनाने में माता-पिता तथा अध्यापकों की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।

1. दृष्टिबाधित बालकों के शैक्षिक प्रावधान

  • ब्रेल लिपि, ऑडियो-बुक्स, टैक्टाइल सामग्री, कंप्यूटर स्क्रीन-रीडर सॉफ्टवेयर

  • विशेष शिक्षकों (Special Educators) की सहायता

  • रिसोर्स रूम, मोबिलिटी ट्रेनिंग, डिजिटल लर्निंग टूल्स

  • पुनर्वास सेवाएँ, परामर्श, समावेशी परिवेश, व्यक्तिगत शिक्षण योजना (IEP)

इन प्रावधानों के सफल क्रियान्वयन में माता-पिता और शिक्षक दोनों समान रूप से उत्तरदायी होते हैं।

2. माता-पिता की भूमिका

(क) प्रारंभिक पहचान एवं सहयोग

माता-पिता बच्चे की दृष्टि संबंधी समस्या को प्रारंभिक अवस्था में पहचानते हैं और समय पर उपचार एवं शैक्षिक प्रावधानों की दिशा में कदम उठाते हैं।

(ख) भावनात्मक समर्थन

दृष्टिबाधित बच्चे अक्सर हीनभावना या सामाजिक हिचकिचाहट महसूस करते हैं। माता-पिता उनका सबसे बड़ा भावनात्मक सहारा होते हैं। वे आत्मविश्वास, साहस और स्वतंत्रता की भावना विकसित करने में मदद करते हैं।

(ग) घरेलू शिक्षण वातावरण

घर में टैक्टाइल सामग्री, ब्रेल चार्ट, ऑडियो लर्निंग संसाधन उपलब्ध कराना उनका दायित्व है। वे बच्चे के सीखने की दिनचर्या सुनिश्चित करते हैं।

(घ) विद्यालय से समन्वय

माता-पिता शिक्षक और विद्यालय के साथ निरंतर संवाद बनाकर रखते हैं। वे IEP बैठकों में भाग लेते हैं, प्रगति की समीक्षा करते हैं और आवश्यक परिवर्तनों का सुझाव देते हैं।

(ङ) गतिशीलता और स्वतंत्रता प्रशिक्षण

घर पर सफेद छड़ी (White Cane), स्पर्श-अनुभूति और दैनिक जीवन कौशल जैसे—कपड़े पहनना, वस्तुओं की पहचान, कमरे का संगठन—करने में सहायता प्रदान करते हैं।

3. अध्यापकों की भूमिका

(क) अनुकूलित शिक्षण-विधियों का उपयोग

शिक्षक ब्रेल, ऑडियो, टैक्टाइल सामग्री और तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके शिक्षण को सुलभ बनाते हैं। वे मल्टी-सेंसरी शिक्षण पर जोर देते हैं।

(ख) व्यक्तिगत शिक्षण योजना (IEP)

अध्यापक बच्चे की क्षमता, आवश्यकता और गति को ध्यान में रखते हुए IEP तैयार करते हैं।

(ग) कक्षा का अनुकूल वातावरण

कक्षा की बैठने की व्यवस्था, प्रकाश, ध्वनि तथा सामग्री को दृष्टिबाधित बच्चों के अनुकूल बनाया जाता है।

(घ) सकारात्मक दृष्टिकोण और प्रोत्साहन

शिक्षक उन्हें सामान्य बच्चों की तरह ही अवसर प्रदान करते हैं, भेदभाव नहीं करते और निरंतर प्रोत्साहित करते हैं।

(ङ) तकनीकी सहायता का उपयोग

स्क्रीन-रीडर, रिफ्रेशेबल ब्रेल डिस्प्ले, मोबाइल एप्स, ऑडियो रिकॉर्डर आदि के उपयोग का प्रशिक्षण देने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(च) सहपाठियों में जागरूकता बढ़ाना

शिक्षक कक्षा में सहयोग, सहानुभूति और समूह-गतिविधियों के माध्यम से सहपाठियों को दृष्टिबाधित बच्चों की सहायता के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

दृष्टिबाधित बच्चों की शिक्षा केवल विद्यालय या सरकारी प्रावधानों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि माता-पिता और शिक्षक दोनों की सक्रिय भागीदारी इसमें मुख्य स्तंभ की तरह कार्य करती है। माता-पिता बच्चे को भावनात्मक सुरक्षा, सहयोग और घर का अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं, जबकि शिक्षक विद्यालय में उनकी सीखने की प्रक्रिया को सुगम, सुलभ और सार्थक बनाते हैं। जब दोनों मिलकर कार्य करते हैं, तब दृष्टिबाधित बालकों की शिक्षा न केवल सफल होती है, बल्कि वे आत्मनिर्भर, सक्षम और समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जीने योग्य बनते हैं।

 




 

Q 11. Describe the needs of Evaluation and Assessment in inclusive school.
प्रश्न- समावेशी विद्यालय में ऑकलन एवं मूल्यांकन की आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

भूमिका

समावेशी शिक्षा का उद्देश्य ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जहाँ सभी बच्चे—सामान्य, दिव्यांग, प्रतिभाशाली, सामाजिक रूप से वंचित, भाषाई विविधता वाले—एक ही विद्यालय में समान अवसरों के साथ सीख सकें। इस विविधता-पूर्ण वातावरण में प्रत्येक बच्चे की सीखने की गति, शैली, क्षमता और आवश्यकता अलग-अलग होती है। अतः समावेशी विद्यालय में शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए आकलन (Assessment) और मूल्यांकन (Evaluation) अत्यंत आवश्यक हो जाते हैं। यह प्रक्रिया न केवल बच्चों की उपलब्धियों का आकलन करती है, बल्कि शिक्षण-प्रक्रिया को सुधारने, संसाधन उपलब्ध कराने और व्यक्तिगत शिक्षण योजना तैयार करने में भी सहायक होती है।

1. समावेशी आकलन एवं मूल्यांकन का अर्थ

समावेशी शिक्षा में आकलन वह निरंतर एवं लचीली प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रत्येक बच्चे की सीखने की आवश्यकताओं, क्षमताओं, प्रगति और कठिनाइयों को पहचाना जाता है। मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम के परिणामों का विश्लेषण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा सभी शिक्षार्थियों के लिए सुलभ एवं प्रभावी है।

2. समावेशी विद्यालय में आकलन एवं मूल्यांकन की आवश्यकताएँ

(क) विविध क्षमताओं की पहचान

समावेशी कक्षा में सभी बच्चे समान स्तर पर नहीं होते। किसी बच्चे को श्रवण, दृष्टि, बौद्धिक, संवेगात्मक या सीखने संबंधी कठिनाई हो सकती है। आकलन इन विविधताओं की पहचान करता है, जिससे शिक्षक उचित शिक्षण विधियाँ अपनाते हैं।

(ख) व्यक्तिगत शिक्षण योजना (IEP) तैयार करना

आकलन से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए IEP तैयार की जाती है। इससे बच्चे की व्यक्तिगत गति तथा आवश्यकता के अनुसार शिक्षण संभव होता है।

(ग) सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE)

समावेशी शिक्षा में केवल परीक्षा आधारित मूल्यांकन पर्याप्त नहीं है। सतत मूल्यांकन—कक्षा-गतिविधियाँ, प्रोजेक्ट, अवलोकन, सहपाठी मूल्यांकन आदि—बच्चे की वास्तविक प्रगति को दर्शाता है।

(घ) शिक्षण विधियों में संशोधन

आकलन से यह स्पष्ट होता है कि कौन-सी विधि किस बच्चे के लिए उपयोगी है। जैसे—दृष्टिबाधित बच्चे के लिए ऑडियो सामग्री, श्रवण-बाधित के लिए दृश्य संकेत, धीमी गति के शिक्षार्थियों के लिए दोहराव-आधारित शिक्षण।

(ङ) सहायक उपकरण एवं संसाधनों की व्यवस्था

आकलन आवश्यकता के अनुसार साधन उपलब्ध कराने में सहायक होता है—जैसे ब्रेल पुस्तकें, hearing aids, resource room सेवाएँ, ICT आधारित उपकरण आदि।

(च) व्यवहारिक एवं सामाजिक कौशलों का मूल्यांकन

समावेशी शिक्षा केवल शैक्षणिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। इसमें सामाजिक सहभागिता, आत्म-नियंत्रण, संप्रेषण, सहयोग और जीवन कौशलों का मूल्यांकन आवश्यक है।

(छ) भेदभाव-रहित एवं लचीला मूल्यांकन

मानक परीक्षाएँ सभी बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होतीं। समावेशी विद्यालय में लचीले प्रश्नपत्र, वैकल्पिक विधियाँ (मौखिक परीक्षा, प्रैक्टिकल मूल्यांकन), अतिरिक्त समय, स्क्राइब की सुविधा आदि आवश्यक होते हैं।

(ज) अभिभावक और विशेषज्ञों के साथ समन्वय

आकलन के आधार पर माता-पिता, विशेष शिक्षकों एवं काउंसलरों के साथ बैठक जरूरी है, जिससे बच्चों की प्रगति की समीक्षा में सभी की सहभागिता सुनिश्चित होती है।

3. समावेशी मूल्यांकन के सिद्धांत

  • बच्चे की क्षमता पर जोर, उसकी कमी पर नहीं

  • अवलोकन आधारित निरंतर मूल्यांकन

  • बहु-आयामी, लचीला और विविध विधियों का प्रयोग

  • व्यक्तिगत भिन्नताओं का सम्मान

  • सकारात्मक प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन

निष्कर्ष

समावेशी विद्यालय में आकलन और मूल्यांकन केवल परीक्षा का माध्यम नहीं, बल्कि शिक्षण को अधिक प्रभावी, समान और छात्र-केंद्रित बनाने की प्रक्रिया है। यह प्रत्येक बच्चे की सीखने की आवश्यकता को समझने, उपयुक्त संसाधन उपलब्ध कराने, शिक्षण-रणनीति में सुधार करने और व्यक्तिगत प्रगति को मापने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब आकलन वैज्ञानिक, निरंतर और लचीला होता है, तभी समावेशी शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य—“सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा”—पूरी तरह सफल हो पाता है।

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