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ज्ञान से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन करे

ज्ञान के प्रकार

ज्ञान से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।

 

उत्तर –  ज्ञान शब्द का अनुवाद ‘नालेज’ (Knowledge) पद से किया जाता है। भारतीय दर्शन के अनुसार ‘ज्ञान का अर्थ’ ‘समझने से पूर्व सत्य की वस्तुनिष्ठता, ज्ञान की सार्थकता, ज्ञान की सत्यता तथा तार्किक परिज्ञप्ति सत्यता से लगाया जाता है।

ज्ञान के प्रकार

 

ज्ञान के प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • (i) आगमनात्मक ज्ञान
  • (ii) प्रयोगमूलक ज्ञान
  • (iii) प्रागानुभव ज्ञान

(i) आगमनात्मक ज्ञान

इस प्रकार का ज्ञान हमारे अनुभव तथा निरीक्षण पर आधारित है जॉन लॉक इस प्रकार के ज्ञान के प्रवर्त्तक हैं। उनके अनुसार बालक का मन जन्म के समय कोरी पटिया के समान होता है। जैसे-जैसे अनुभव मिलते जाते हैं, इस पटिया पर लेखन होने लगता है। इससे तात्पर्य है कि ज्ञान अनुभवों द्वारा वृद्धि करता रहता है। शिक्षा में इस प्रकार के ज्ञान के प्रवर्त्तक कहते हैं कि सीखने के लिए समग्र अनुभव प्रदान करने चाहिए। इस प्रकार के ज्ञान में अलौकिक का कोई स्थान नहीं है।

(ii) प्रयोगमूलक ज्ञान-

ज्ञान प्रयोग द्वारा प्राप्त होता है, ऐसा प्रयोजनवादियों की धारणा है | ड्यूवी का कहना है कि ज्ञान की प्रक्रिया ‘एक प्रयास एवं सहन’ की प्रक्रिया है-एक विचार का अभ्यास में प्रयास करना एवं ऐसे प्रयास के परिणाम से जो फल प्राप्त होते हैं उनसे सीखना। इस धारणा के अनुसार ज्ञान कोई भी ऐसी चीज नहीं है जिसे हम समझें कि वह अनुभव या निरीक्षण से अन्तिम रूप से समझी जा सकती है जबकि हम ऐसी विधियों का प्रयोग करते हैं, जैसे आगमन। यह तो कुछ ऐसी वस्तु है जो अनुभव में सक्रिय होती है। एक कृत्य की भाँति जो अनुभव को सन्तोषपूर्ण ढंग से आगे की ओर ले जाती है।

(iii) प्रागानुभव ज्ञान-

ज्ञान स्वयं-प्रत्यक्ष की भाँति समझा जाता है। सिद्धान्त जब समझ लिए जाते हैं, सत्य पहचान लिए जाते हैं फिर उन्हें निरीक्षण, अनुभव या प्रयोग द्वारा प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती। इस विचारधारा के प्रवर्त्तक कान्ट हैं जो कहते हैं कि सामान्य सत्य अनुभव से स्वतन्त्र होने चाहिए-उन्हें स्वयं में स्पष्ट तथा निश्चित होना चाहिए। गणित का ज्ञान प्रागानुभव ज्ञान समझा जाता है।




उपर्युक्त वर्णन के अनुसार एक प्रकार का ज्ञान वह है जो अनुभव के पश्चात् प्राप्त होता है। दूसरे प्रकार का वह है जो प्रयोग, निरीक्षण तथा अनुभव पर केन्द्रित है तथा तीसरे प्रकार का ज्ञान अनुभव से परे है। इस प्रकार के ज्ञान के सम्बन्ध में धारणा होती है कि अनुभव केवल तथ्य ही देता है परन्तु तथ्य किसी बात को सिद्ध नहीं करते। उनसे सत्य का ज्ञान उस समय तक नहीं हो सकता जब तक कि उनको संगठित न किया जाए। तर्क द्वारा वह संगठित किये जाते हैं। इस प्रकार तर्क या बुद्धि अनुभव को ज्ञान में परिवर्तित करता जाता है। किन्तु कुछ सत्य को अनुभव से प्राप्त तथ्यों की कोई आवश्यकता नहीं होती। यह स्वयं स्पष्ट तथा स्वयं सिद्ध है। प्रागानुभविक ज्ञान ऐसा ज्ञान कहलाता है जिसे बुद्धि अनुभव की सहायता के बिना प्राप्त करती है।

शिक्षण प्रदान करने में हमें इन तीनों प्रकार के ज्ञान को ध्यान में रखना चाहिए। विभिन्न विषयों का ज्ञान हमें अनुभव द्वारा प्राप्त होता है। गणित या तर्कशास्त्र का ज्ञान प्रागानुभविक प्रकार का ज्ञान है। गणित के शिक्षण के समय हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।
(TAG WORD )

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