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MAGADH UNIVERSITY B.Ed. 1st YEAR PAPER 1 UNIT 5 SOLUTION

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MAGADH UNIVERSITY B.Ed. 1st YEAR PAPER 1 UNIT 5 SOLUTION

UNIT 5: Children in their Natural Setting SYLLABUS
इकाई 5: अपने प्राकृतिक परिवेश में बच्चे

⚫ Observation about children by Parent and Teacher.
माता-पिता और शिक्षक द्वारा बच्चों का अवलोकन।

⚫ Children in their natural settings; (Play, Community Setting) using activities as a base to establish rapport, childhood and their growing up in a realistic context
अपने प्राकृतिक परिवेश में बच्चे; (खेल, सामुदायिक परिवेश) गतिविधियों को आधार बनाकर आपसी तालमेल, बचपन और उनके वास्तविक संदर्भ में बड़े होने का अनुभव।

⚫ Impact of gender caste, social class, urbanization and economic change for the lived experience of children.
बच्चों के जीवन के अनुभवों पर लिंग, जाति, सामाजिक वर्ग, शहरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव।

⚫ Concept and processes of socialization: Ecological theory of Bronfen Brenner.
समाजीकरण की अवधारणा और प्रक्रियाएँ: ब्रोंफेन ब्रेनर का पारिस्थितिक सिद्धांत।

⚫ Individual difference among children: socio-cultural and economic context: process of socialization.
बच्चों में व्यक्तिगत अंतर: सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ: समाजीकरण की प्रक्रिया।

⚫Relationships with peers: friendships and gender; competition and cooperation, competition and conflict; aggression and bullying during childhood.
साथियों के साथ संबंध: मित्रता और लिंग; प्रतिस्पर्धा और सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष; बचपन में आक्रामकता और बदमाशी।




UNTI 5: Children in Their Natural Settings SOLUTION

TABLE OF CONTANT

(01)प्रश्न – माता-पिता और शिक्षक द्वारा बच्चों का अवलोकन।

(02) प्रश्न – अपने प्राकृतिक परिवेश में बच्चे; (खेल, सामुदायिक परिवेश) गतिविधियों को आधार बनाकर आपसी तालमेल, बचपन और उनके वास्तविक संदर्भ में बड़े होने का अनुभव।

(03)प्रश्न – बच्चों के जीवन के अनुभवों पर लिंग, जाति, सामाजिक वर्ग, शहरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव।

(04)प्रश्न -समाजीकरण की अवधारणा और प्रक्रियाएँ: ब्रोंफेन ब्रेनर का पारिस्थितिक सिद्धांत।

(05)प्रश्न – बच्चों में व्यक्तिगत अंतर: सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ: समाजीकरण की प्रक्रिया।

(06)प्रश्न – साथियों के साथ संबंध: मित्रता और लिंग; प्रतिस्पर्धा और सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष; बचपन में आक्रामकता और बदमाशी।

 

(01)TOPIC – Observation about Children by Parents and Teachers SOLUTION

 

प्रश्न:- माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा बालकों का अवलोकन

उत्तर –
A. परिचय :
B. अवलोकन का अर्थ :
C. माता-पिता द्वारा अवलोकन :
D. माता-पिता द्वारा अवलोकन के क्षेत्र:
E. माता-पिता द्वारा अवलोकन महत्त्व:
F. अध्यापकों द्वारा अवलोकन :
G. अध्यापक द्वारा अवलोकन के क्षेत्र:
H. अवलोकन की विधियाँ:
I. अवलोकन के लाभ:
J. अवलोकन की सावधानियाँ:
K. निष्कर्ष :

(A) परिचय:
बालक (Child) एक विकसित होती हुई इकाई है। उसके सर्वांगीण विकास—शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक तथा बौद्धिक—को समझने के लिए उसका सावधानीपूर्वक अवलोकन (Observation) आवश्यक है। अवलोकन के माध्यम से बालक के व्यवहार, रुचि, अभिरुचि, आदतें, भावनाएँ, प्रतिभाएँ तथा समस्याओं को जाना जा सकता है।
(B) अवलोकन का अर्थ :
“किसी व्यक्ति के व्यवहार या क्रिया को ध्यानपूर्वक और योजनाबद्ध रूप से देखना और उसके आधार पर निष्कर्ष निकालना।”
शिक्षा में यह एक महत्वपूर्ण अनुसंधान और मूल्यांकन विधि है, जिसके माध्यम से अध्यापक और अभिभावक बालक की वास्तविक स्थिति को बिना हस्तक्षेप के जान सकते हैं।

(C) माता-पिता द्वारा अवलोकन :
माता-पिता बच्चे के प्रथम शिक्षक होते हैं। वे बच्चे के साथ सबसे अधिक समय बिताते हैं, इसलिए वे उसके प्रारंभिक व्यवहार, भावनात्मक प्रतिक्रियाओं और आदतों को अच्छी तरह समझ सकते हैं।

(D) माता-पिता द्वारा अवलोकन के क्षेत्र:
1. शारीरिक विकास: ऊँचाई, वजन, स्वास्थ्य, खान-पान, नींद की आदतें।
2. भावनात्मक विकास: गुस्सा, डर, ईर्ष्या, स्नेह, सहानुभूति की भावना।
3. सामाजिक विकास: परिवार के सदस्यों और मित्रों से व्यवहार।
4. भाषा विकास: बोलने की शैली, शब्द भंडार, संप्रेषण कौशल।
5. रुचि और अभिरुचि: खेल, संगीत, चित्रकारी या अन्य गतिविधियों में रुचि।
6. अध्ययन की आदतें: ध्यान, जिज्ञासा, अनुशासन, कार्य पूर्ण करने की प्रवृत्ति।

(E) माता-पिता द्वारा अवलोकन महत्त्व:
• माता-पिता बच्चे की समस्याओं को प्रारंभिक अवस्था में पहचान सकते हैं।
• वे घर का वातावरण बच्चे के विकास के अनुसार अनुकूल बना सकते हैं।
• इससे पारिवारिक संबंध मधुर और समझदारीपूर्ण बनते हैं।

(F) अध्यापकों द्वारा अवलोकन :
विद्यालय में अध्यापक का कार्य केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व का समग्र विकास करना है। इसके लिए अध्यापक को प्रत्येक विद्यार्थी का सतत अवलोकन करना आवश्यक होता है।
(G) अध्यापक द्वारा अवलोकन के क्षेत्र:
1. शैक्षिक प्रदर्शन: ध्यान, समझने की क्षमता, गृहकार्य, अंक आदि।
2. कक्षा व्यवहार: अनुशासन, सहभागिता, समूह कार्य में सहयोग।
3. रुचि और प्रतिभा: संगीत, कला, खेल, लेखन आदि में योग्यता।
4. भावनात्मक स्थिति: आत्मविश्वास, डर, चिंता, उदासी आदि।
5. सामाजिक व्यवहार: मित्रों से व्यवहार, नेतृत्व, सहयोग की भावना।
6. अनुशासन और जिम्मेदारी: समय पालन, कर्तव्यनिष्ठा, कार्यशैली।

(H) अवलोकन की विधियाँ:
1. प्रत्यक्ष अवलोकन (Direct Observation):
शिक्षक/अभिभावक बालक को उसकी सामान्य गतिविधियों में देखकर जानकारी प्राप्त करते हैं।
2. अप्रत्यक्ष अवलोकन (Indirect Observation):
बालक के कार्य, लिखित उत्तर, चित्र या व्यवहार के माध्यम से अध्ययन किया जाता है।
3. संरचित अवलोकन (Structured Observation):
पूर्व निर्धारित बिंदुओं के आधार पर अवलोकन किया जाता है।
4. असंरचित अवलोकन (Unstructured Observation):
स्वाभाविक रूप से बिना योजना के बालक को देखा जाता है।

(I)अवलोकन के लाभ:
• बालक की व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने में सहायता।
• बालक की समस्याओं का निदान करने में सहायक।
• व्यक्तित्व विकास हेतु उपयुक्त मार्गदर्शन देने में उपयोगी।
• शिक्षण विधियों में सुधार के लिए उपयोगी।
• माता-पिता और शिक्षक के बीच समन्वय (Coordination) स्थापित होता है।

(J) अवलोकन की सावधानियाँ:
1. अवलोकन निष्पक्ष (Objective) होना चाहिए।
2. केवल एक घटना पर नहीं, निरंतर व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए।
3. अवलोकन का रिकॉर्ड (Record) रखना चाहिए।
4. पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत भावना से बचना चाहिए।

(K) निष्कर्ष:
बालक का विकास निरंतर परिवर्तनशील प्रक्रिया है। इसलिए माता-पिता और अध्यापक दोनों का संयुक्त अवलोकन आवश्यक है। दोनों यदि बालक के व्यवहार और भावनाओं को ध्यानपूर्वक समझकर सहयोग करें, तो बालक का संतुलित, समन्वित और सर्वांगीण विकास संभव है।




 

(02)TOPIC -Children in their natural settings; (Play, Community Setting) using activities as a base to establish rapport, childhood and their growing up in a realistic context SOLUTION

TOPIC – Children in their natural setting; (play, community setting) using activities as a base to establish rapport, childhood and their growing up in a realistic context

प्रश्न: – बच्चों का उनके प्राकृतिक परिवेश (खेल, सामुदायिक परिवेश) में अवलोकन करते हुए, गतिविधियों के आधार पर उनके साथ सौहार्द स्थापित करना — बाल्यावस्था और उनके विकास को यथार्थ संदर्भ में समझाइए।

उत्तर:
1. भूमिका
2. बच्चों का प्राकृतिक परिवेश
3. खेल के माध्यम से अवलोकन
4. सामुदायिक परिवेश में अवलोकन
5. गतिविधियों के माध्यम से सौहार्द स्थापित करना:
6. बाल्यावस्था और यथार्थ विकास
7. शिक्षक की भूमिका
8. निष्कर्ष

1. भूमिका (Introduction):
बालक मानव जीवन का सबसे कोमल, जिज्ञासु और विकासशील रूप होता है। बाल्यावस्था में बच्चे का मस्तिष्क, भावनाएँ और व्यवहार निरंतर परिवर्तनशील रहते हैं। उन्हें समझने और मार्गदर्शन देने के लिए यह आवश्यक है कि हम उन्हें उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों में देखें — जहाँ वे बिना किसी दबाव के, पूरी स्वतंत्रता से अपने विचारों और व्यवहारों को व्यक्त कर सकें। शिक्षक या अभिभावक के लिए बच्चों का उनके खेल, सामाजिक परिवेश और सामुदायिक गतिविधियों में अवलोकन करना अत्यंत उपयोगी होता है, क्योंकि वहीं उनका वास्तविक व्यक्तित्व और स्वभाव प्रकट होता है।
2. बच्चों का प्राकृतिक परिवेश (Natural Setting):
प्राकृतिक परिवेश से तात्पर्य उस वातावरण से है जहाँ बच्चा स्वतंत्र, सहज और सुरक्षित महसूस करता है। यह घर, विद्यालय, खेल का मैदान या समुदाय — कहीं भी हो सकता है। इस वातावरण में बच्चे कृत्रिम व्यवहार नहीं करते, बल्कि स्वाभाविक रूप से अपनी रुचियाँ, क्षमताएँ, भावनाएँ और कल्पनाशक्ति व्यक्त करते हैं। खेलते समय बच्चे सहयोग, प्रतिस्पर्धा, नेतृत्व, सहानुभूति और समूह भावना जैसी सामाजिक विशेषताएँ विकसित करते हैं। परिवार या समुदाय में वे बुजुर्गों से सीखते हैं, परंपराएँ अपनाते हैं और सामाजिक मूल्यों को समझते हैं। इस प्रकार, बालक का संपूर्ण विकास (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक) इन्हीं अनुभवों से होता है।

3. खेल के माध्यम से अवलोकन (Observation through Play):
खेल बच्चों की प्राकृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है। खेल के समय बच्चा अपने भावनात्मक, सामाजिक और संज्ञानात्मक विकास की झलक दिखाता है।
• शारीरिक विकास: दौड़ना, कूदना, चढ़ना, संतुलन बनाना जैसी गतिविधियाँ बच्चे की शारीरिक दक्षता बढ़ाती हैं।
• सामाजिक विकास: समूह में खेलते हुए बच्चा सहयोग, बारी-बारी से खेलने, दूसरों की भावनाओं को समझने और नियमों का पालन करने की प्रवृत्ति विकसित करता है।
• भावनात्मक विकास: खेल में हार-जीत की स्थितियाँ बच्चे को आत्मसंयम, सहनशीलता और आत्मविश्वास सिखाती हैं।
• बौद्धिक विकास: खेलों में रणनीति बनाना, निर्णय लेना और समस्याओं का समाधान करना उसकी बुद्धि को सक्रिय करता है।
इस प्रकार, खेल के दौरान बच्चे का अवलोकन करने से शिक्षक को उसके व्यक्तित्व की वास्तविक झलक मिलती है।

4. सामुदायिक परिवेश में अवलोकन (Community Setting Observation):
सामुदायिक वातावरण में बच्चा अपने परिवार, मित्रों, पड़ोसियों और समाज के अन्य लोगों से जुड़ता है। यहाँ वह सांस्कृतिक मूल्य, सामाजिक नियम, भाषा व्यवहार और नैतिक गुण सीखता है। सामुदायिक गतिविधियाँ जैसे त्योहारों में भाग लेना, सामूहिक सफाई, वृक्षारोपण, या जनसेवा में भाग लेना — बच्चे में जिम्मेदारी और सहयोग की भावना को प्रबल करती हैं। इस दौरान शिक्षक बच्चों का अवलोकन कर यह समझ सकता है कि वे सामूहिक कार्यों में कितना सक्रिय, सहायक और नेतृत्वशील हैं।

5. गतिविधियों के माध्यम से सौहार्द (Rapport) स्थापित करना:
बच्चों से संबंध (Rapport) बनाना शिक्षण और अवलोकन की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। सौहार्द का अर्थ है — विश्वास, आत्मीयता और खुलापन। जब बच्चे शिक्षक पर भरोसा करते हैं, तो वे अपने विचार, भावनाएँ और अनुभव सहजता से साझा करते हैं। शिक्षक को बच्चों के साथ खेल, चित्रकला, कहानी सुनाना, गीत गाना, या सामूहिक कार्यों में भाग लेकर उनके करीब आना चाहिए। इस तरह की गतिविधियाँ शिक्षक और बच्चों के बीच एक भावनात्मक संबंध बनाती हैं। इस सौहार्दपूर्ण संबंध से शिक्षक बच्चों के व्यवहार, सोच, रुचि और सीखने की शैली को गहराई से समझ पाते हैं।

6. बाल्यावस्था और यथार्थ विकास (Childhood and Realistic Development):
बाल्यावस्था वह समय है जब बच्चे का संपूर्ण व्यक्तित्व आकार लेता है। यदि बच्चे का अध्ययन केवल कक्षा के वातावरण में किया जाए, तो उसकी सीमित झलक ही मिलती है। लेकिन जब उसे वास्तविक परिवेश — जैसे घर, खेल, समुदाय या मित्रों के बीच — में देखा जाए, तब उसके यथार्थ विकास को समझना संभव होता है। बच्चे का व्यवहार यह दर्शाता है कि वह किन परिस्थितियों में सहज है और किन में नहीं।  यह अवलोकन उसके भावनात्मक स्वास्थ्य, सामाजिक कौशल और सीखने की क्षमता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है।

7. शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher):
• शिक्षक को बच्चे के साथ एक सहायक, मित्रवत और प्रोत्साहक संबंध बनाए रखना चाहिए।
• उसे बच्चों की गतिविधियों का संवेदनशील और निष्पक्ष अवलोकन करना चाहिए।
• शिक्षक को यह नहीं भूलना चाहिए कि हर बच्चा अपनी गति और तरीके से सीखता है, इसलिए अवलोकन के दौरान तुलना या आलोचना से बचना चाहिए।

8. निष्कर्ष (Conclusion):
अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बच्चों का उनके प्राकृतिक परिवेश में अवलोकन करना बाल विकास की समझ का सबसे प्रभावी माध्यम है। खेल और सामुदायिक गतिविधियाँ बच्चों के व्यक्तित्व, रुचि, सृजनशीलता और सामाजिक कौशल को पहचानने का वास्तविक अवसर देती हैं। जब शिक्षक या पर्यवेक्षक बच्चों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाकर उन्हें उनकी प्राकृतिक स्थिति में देखते हैं, तो वे न केवल उनके वर्तमान को समझते हैं, बल्कि उनके भविष्य के समग्र विकास का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं।




 

(03)TOPIC – Impact of gender caste, social class, urbanization and economic change for the lived experience of children. SOLUTION

प्रश्न – बच्चों के जीवन के अनुभवों पर लिंग, जाति, सामाजिक वर्ग, शहरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव।
उत्तर –

भूमिका :

बच्चों का जीवन केवल परिवार या विद्यालय तक सीमित नहीं होता, बल्कि उनके आस-पास की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियाँ उनके अनुभवों को गहराई से प्रभावित करती हैं। लिंग, जाति, वर्ग, शहरीकरण और आर्थिक परिवर्तन जैसे तत्व बच्चों के अवसर, व्यवहार, सोच और आत्म-छवि को आकार देते हैं।

बच्चों के जीवन के अनुभवों पर लिंग, जाति, सामाजिक वर्ग, शहरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव।

1. लिंग (Gender) का प्रभाव :

  • समाज में प्रचलित लिंग आधारित भूमिकाएँ बच्चों के अनुभवों को प्रभावित करती हैं।
  • लड़कियों से अपेक्षा की जाती है कि वे “संकोची” और “घरेलू कार्यों” में निपुण हों, जबकि लड़कों को “साहसी” और “स्वतंत्र” माना जाता है।
  • इससे बच्चों में आत्मविश्वास, रुचियों और भविष्य के सपनों में अंतर आ जाता है।
  • विद्यालय में भी कभी-कभी यह भेदभाव अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है।

2. जाति (Caste) का प्रभाव :

  • भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का बच्चों के अनुभवों पर गहरा असर होता है।
  • निम्न जातियों के बच्चे सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं, जिससे उनमें हीन भावना और असुरक्षा की भावना विकसित हो सकती है।
  • कई बार यह भेदभाव विद्यालय के वातावरण या मित्रता के संबंधों में भी दिखता है।

3. सामाजिक वर्ग (Social Class) का प्रभाव :

  • गरीब और अमीर वर्ग के बच्चों के जीवन के अनुभवों में बड़ा अंतर होता है।
  • सम्पन्न परिवारों के बच्चों को बेहतर शिक्षा, संसाधन और अवसर मिलते हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को संघर्ष करना पड़ता है।
  • यह अंतर उनके आत्मविश्वास और जीवन दृष्टि को प्रभावित करता है।

4. शहरीकरण (Urbanization) का प्रभाव :

शहरी जीवन बच्चों को तकनीकी, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अवसर देता है,
लेकिन साथ ही प्रतिस्पर्धा, तनाव और पारिवारिक दूरी जैसी समस्याएँ भी लाता है।
ग्रामीण बच्चे प्रकृति से जुड़े रहते हैं, परंतु अवसर सीमित होते हैं।

5. आर्थिक परिवर्तन (Economic Change) का प्रभाव :

  • आर्थिक बदलावों के कारण जीवन-शैली, पारिवारिक ढाँचा और शिक्षा प्रणाली प्रभावित होती है।
  • तकनीकी विकास और उपभोक्तावाद ने बच्चों की रुचियों व व्यवहार को बदला है।
  • वहीं गरीबी या बेरोज़गारी की स्थिति में बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।

निष्कर्ष :

बच्चों का विकास केवल जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों का परिणाम है।शिक्षक और अभिभावकों को चाहिए कि वे इन विविधताओं को समझें,बिना भेदभाव के समान अवसर प्रदान करें और समावेशी वातावरण बनाएं, ताकि प्रत्येक बच्चा अपने जीवन के अनुभवों को सकारात्मक दिशा में विकसित कर सके।




 

(04)TOPIC – Concept and processes of socialization: Ecological theory of Bronfen Brenner SOLUTION

प्रश्न – समाजीकरण की अवधारणा और प्रक्रियाएँ: ब्रोंफेन ब्रेनर का पारिस्थितिक सिद्धांत।
उत्तर  –

भूमिका :

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जन्म के बाद वह समाज में रहकर बोलना, व्यवहार करना, मूल्य और परंपराएँ सीखता है। यही सीखने की प्रक्रिया समाजीकरण (Socialization) कहलाती है। समाजीकरण वह माध्यम है जिसके द्वारा बच्चा समाज का सक्रिय सदस्य बनता है।

समाजीकरण की अवधारणा :

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज की संस्कृति, मूल्य, आचरण, परंपराएँ और सामाजिक भूमिकाएँ सीखता है।
यह व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण, नैतिक विकास, तथा सामाजिक समायोजन का आधार है।
इस प्रक्रिया में परिवार, विद्यालय, मित्र समूह, और समाज की संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

समाजीकरण की प्रमुख प्रक्रियाएँ :

अनुकरण (Imitation) – बच्चा अपने माता-पिता, शिक्षकों और साथियों के व्यवहार की नकल करता है।

सुझाव (Suggestion) – बड़े लोग अपने विचारों और सलाहों से बच्चे के सोचने के ढंग को प्रभावित करते हैं।

पहचान (Identification) – बच्चा उन व्यक्तियों से अपनी पहचान जोड़ता है जिन्हें वह आदर्श मानता है।

सामाजीकरण द्वारा नियंत्रण (Social Control) – समाज के नियम, अनुशासन और पुरस्कार-दंड की व्यवस्था से बच्चे का व्यवहार नियंत्रित होता है।

भूमिका-निभाव (Role Playing) – बच्चा सामाजिक भूमिकाओं को निभाकर सामाजिक मानदंडों को समझता है।

ब्रोंफेनब्रेनर का पारिस्थितिक सिद्धांत (Bronfenbrenner’s Ecological Theory):

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक उरी ब्रोंफेनब्रेनर (Urie Bronfenbrenner) ने समझाया कि बच्चे का विकास अलग-अलग सामाजिक परिवेशों के परस्पर प्रभाव से होता है। उन्होंने पाँच स्तर बताए:

माइक्रोसिस्टम (Microsystem):
बच्चा जिन लोगों और संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है — जैसे परिवार, विद्यालय, मित्र समूह।

मेसोसिस्टम (Mesosystem):
बच्चे के विभिन्न माइक्रोसिस्टमों के बीच संबंध — जैसे परिवार और विद्यालय के बीच तालमेल।

एक्सोसिस्टम (Exosystem):
ऐसे सामाजिक परिवेश जिनका प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से बच्चे पर पड़ता है — जैसे माता-पिता का कार्यस्थल।

मैक्रोसिस्टम (Macrosystem):
समाज की व्यापक संस्कृति, परंपराएँ, मूल्य और कानून।

क्रोनोसिस्टम (Chronosystem):
समय के साथ बदलती परिस्थितियाँ — जैसे परिवार में परिवर्तन, सामाजिक या तकनीकी बदलाव।

निष्कर्ष :

समाजीकरण बच्चे के व्यक्तित्व और सामाजिक व्यवहार की नींव है।
ब्रोंफेनब्रेनर का सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि बच्चे का विकास केवल परिवार से नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से प्रभावित होता है।
इसलिए शिक्षकों को बच्चे के विकास को समझने के लिए उसके सामाजिक संदर्भ को भी ध्यान में रखना चाहिए।




 

(05)TOPIC -Individual difference among children: socio-cultural and economic context: process of socialization. SOLUTION

प्रश्न – बच्चों में व्यक्तिगत अंतर: सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ: समाजीकरण की प्रक्रिया।
उत्तर –

भूमिका :

हर बच्चा अपने अनुभवों, पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक परिवेश के कारण एक-दूसरे से भिन्न होता है। इन भिन्नताओं को ही व्यक्तिगत अंतर (Individual Differences) कहा जाता है। बच्चे का विकास केवल जैविक कारणों से नहीं, बल्कि उसके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ से भी प्रभावित होता है।

1. व्यक्तिगत अंतर की अवधारणा :

व्यक्तिगत अंतर से आशय है – दो व्यक्तियों के बीच बौद्धिक, भावनात्मक, व्यवहारिक, सामाजिक और शारीरिक स्तर पर पाए जाने वाले अंतर।
हर बच्चा अपनी प्रतिभा, रुचि, भाषा, सोचने के ढंग और व्यवहार में अलग होता है।
ये अंतर बच्चे के वातावरण, पारिवारिक माहौल और सामाजिक अवसरों से उत्पन्न होते हैं।

2. सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ का प्रभाव :

सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ बच्चे के अनुभवों और व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित करती हैं।

परिवार और समुदाय बच्चे को मूल्य, भाषा, परंपरा और आचरण सिखाते हैं।

धर्म, संस्कृति और रीतिरिवाज उसके नैतिक और भावनात्मक विकास का आधार बनते हैं।

लिंग, जाति और सामाजिक स्थिति भी बच्चे के आत्म-सम्मान और अवसरों को प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार समाज और संस्कृति बच्चे के व्यवहार की दिशा तय करते हैं।

3. आर्थिक संदर्भ का प्रभाव :

बच्चे की शिक्षा और विकास पर आर्थिक स्थिति का बड़ा प्रभाव पड़ता है।

सम्पन्न परिवार के बच्चों को अधिक संसाधन, तकनीकी साधन और प्रेरक वातावरण मिलता है।

गरीब परिवारों के बच्चों में संसाधनों की कमी, तनाव, और शिक्षा से दूरी जैसी कठिनाइयाँ होती हैं।
इस आर्थिक असमानता के कारण बच्चों के अनुभव और आत्मविश्वास में अंतर आ जाता है।

4. समाजीकरण की प्रक्रिया :

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा समाज की मान्यताओं, मूल्यों और व्यवहारों को सीखता है।

परिवार: सबसे पहला और प्रमुख समाजीकरण संस्थान।

विद्यालय: अनुशासन, सहकारिता और सामाजिक जीवन सिखाता है।

मित्र समूह: समान आयु के बच्चों से व्यवहार और सहयोग की भावना विकसित होती है।

मीडिया और समाज: आदर्श प्रस्तुत कर बच्चों की सोच और जीवनशैली को प्रभावित करते हैं।

निष्कर्ष :

बच्चों के बीच पाए जाने वाले व्यक्तिगत अंतर सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम हैं।
समाजीकरण की प्रक्रिया इन्हीं परिस्थितियों में बच्चों को समाज के अनुकूल बनाती है।
शिक्षक का दायित्व है कि वह इन भिन्नताओं को समझे और प्रत्येक बच्चे को समान अवसर व सहायक वातावरण प्रदान करे ताकि हर बच्चा अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँच सके।




 

(06)TOPIC -Relationships with peers: friendships and gender; competition and cooperation, competition and conflict; aggression and bullying during childhood SOLUTION

प्रश्न – साथियों के साथ संबंध: मित्रता और लिंग; प्रतिस्पर्धा और सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष; बचपन में आक्रामकता और बदमाशी।
उत्तर –

भूमिका :

बच्चे का सामाजिक विकास उसके साथियों (Peers) के साथ संपर्क से गहराई से जुड़ा होता है।साथियों के साथ खेलने, बातचीत करने और अनुभव बाँटने से बच्चे में सहयोग, प्रतिस्पर्धा, अनुशासन, संवेदनशीलता और आत्म-नियंत्रण जैसी गुण विकसित होते हैं।इस दौरान मित्रता, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष जैसी स्थितियाँ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती हैं।

1. साथियों के साथ संबंध (Peer Relations):

साथी बच्चे के सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।
वे बच्चे को समूह में रहना, विचार साझा करना, निर्णय लेना और दूसरों की भावनाओं को समझना सिखाते हैं।
साथी संबंध बच्चों में आत्मविश्वास और सामाजिक समायोजन की भावना विकसित करते हैं।

2. मित्रता और लिंग (Friendship and Gender):

मित्रता बच्चों के विकास में एक भावनात्मक सहारा होती है।

प्रारंभिक बचपन में बच्चे समान रुचियों और खेलों के आधार पर मित्र बनाते हैं।

लिंग का प्रभाव यह होता है कि लड़के प्रायः बड़े समूह में सक्रिय खेल पसंद करते हैं, जबकि लड़कियाँ भावनात्मक जुड़ाव और बातचीत पर अधिक ध्यान देती हैं।

किशोरावस्था में मित्रता और भी गहरी और भरोसेमंद हो जाती है।

3. प्रतिस्पर्धा और सहयोग (Competition and Cooperation):

प्रतिस्पर्धा बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, लेकिन अत्यधिक प्रतिस्पर्धा तनाव और ईर्ष्या भी बढ़ा सकती है।

सहयोग से बच्चों में टीम भावना, सहानुभूति और साझा लक्ष्य के लिए काम करने की क्षमता बढ़ती है।
शिक्षक का कार्य है कि वह प्रतिस्पर्धा को स्वस्थ बनाए और सहयोग की भावना को बढ़ावा दे।

4. प्रतिस्पर्धा और संघर्ष (Competition and Conflict):

कभी-कभी प्रतिस्पर्धा संघर्ष का रूप ले लेती है, जब बच्चे तुलना या असमान व्यवहार महसूस करते हैं।
इस स्थिति में आक्रोश, ईर्ष्या और नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
संघर्ष का समाधान संवाद, सहयोग और परस्पर समझ से संभव है।

5. बचपन में आक्रामकता और बदमाशी (Aggression and Bullying):

आक्रामकता वह व्यवहार है जिसमें बच्चा दूसरों को शारीरिक या मानसिक रूप से हानि पहुँचाने की कोशिश करता है।
बदमाशी (Bullying) आक्रामकता का एक सामाजिक रूप है जिसमें कोई बच्चा बार-बार दूसरों को डराता, नीचा दिखाता या सताता है।
इसके कारणों में पारिवारिक तनाव, असुरक्षा, या अनुशासन की कमी शामिल हैं।
शिक्षकों को ऐसे व्यवहार की पहचान कर बच्चों को सहानुभूति, अनुशासन और भावनात्मक नियंत्रण सिखाना चाहिए।

निष्कर्ष :

साथियों के साथ संबंध बच्चे के सामाजिक-भावनात्मक विकास का आधार हैं।
मित्रता, सहयोग और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बच्चे के सकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं,
जबकि संघर्ष और आक्रामकता नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं।
अतः आवश्यक है कि परिवार और विद्यालय दोनों बच्चों को सहयोग, सम्मान और सहानुभूति का वातावरण प्रदान करें।

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