| TOPIC | VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER GENDER SCHOOL AND SOCIETY PREVIOUS YEAR QUESTION PAPER SOLUTION |
| UNIVERSITY | VEER BAHADUR SINGH PURVANCHAL UNIVERSITY , JAUNPUR |
| SEMESTER | 3rd SEMESTER |
| PAPER | ii- GENDER SCHOOL AND SOCIETY |
| OLD QUESTION PAPER WITH ANSWER | |
| OFFICIAL WEBSITE | VBSPU OFFICIAL WEBSITE |
| OTHER WEBSITE | AB JANKARI |
| EXAM DATE | 22 DECEMBER 2025 |
| RESULT DATE | NO NEWS—– Wating — |
VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER GENDER SCHOOL AND SOCIETY2023 PREVIOUS YEAR QUESTION PAPER


VBSPU B.Ed 3rd SEMESTER GENDER SCHOOL AND SOCIETY2023 PREVIOUS YEAR QUESTION PAPER WITH ANSWER
B.Ed. (Third Semester)
Examination, 2023
Paper-II (302)
(Gender, School and Society)
Time : Three Hours ]
[ Maximum Marks : 90
Note: Attempt questions from all sections as per instructions.
सभी खण्डों से निर्देशानुसार प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
Section – A / खण्ड-अ
(Very Short Answer Type Questions) (अति लघु उत्तरीय प्रश्न)
Note: Attempt all parts of this question. Give answer of each part in about 50 words. 2× 10 = 20
इस प्रश्न के सभी भागों का उत्तर दीजिए । प्रत्येक भाग का उत्तर लगभग 50 शब्दों में दीजिए ।
Q (i) What is the Socialist Feminism?
प्रश्न – सामाजिक नारीवाद क्या है?
उत्तर – सामाजिक नारीवाद वह विचारधारा है जो मानती है कि महिलाओं की असमानता केवल लैंगिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं से भी जुड़ी है। यह पूँजीवाद, वर्ग-विभाजन और पितृसत्ता को महिलाओं के शोषण के प्रमुख कारण मानता है। सामाजिक नारीवाद समान मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर देता है।
Q (ii) What is Reproductive Technology?
प्रश्न – जननीय तकनीकी क्या है?
उत्तर – जननीय तकनीकी उन वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और तकनीकों को कहते हैं जिनकी सहायता से संतानोत्पत्ति से संबंधित समस्याओं का समाधान किया जाता है। इसमें IVF, IUI, सरोगेसी, टेस्ट-ट्यूब बेबी और भ्रूण परीक्षण जैसी आधुनिक विधियाँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य बांझपन का उपचार, सुरक्षित प्रसव और मातृ-शिशु स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है।
Q (iii) What is concept of Class?
प्रश्न – वर्ग की अवधारणा क्या है?
उत्तर -वर्ग की अवधारणा समाज को आर्थिक, सामाजिक और व्यावसायिक आधार पर विभाजित करने से संबंधित है। समाज में लोगों का स्थान उनकी आय, संपत्ति, शिक्षा और पेशे के आधार पर तय होता है। वर्ग-संरचना में उच्च वर्ग, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग प्रमुख श्रेणियाँ मानी जाती हैं। यह अवधारणा समाज में असमानताओं और सामाजिक गतिशीलता को समझने में सहायक होती है।
Q (iv) Role of Media in Women Empowerment.
प्रश्न – महिला सशक्तिकरण में मीडिया की भूमिका ।
उत्तर – मीडिया महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता से संबंधित मुद्दों को उजागर कर समाज में जागरूकता बढ़ाता है। यह महिलाओं की उपलब्धियों को मंच प्रदान कर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है। मीडिया लैंगिक भेदभाव, हिंसा और असमानता के विरुद्ध जनता को संवेदनशील बनाता है। विज्ञापनों, समाचारों और सोशल मीडिया के माध्यम से सकारात्मक छवि निर्माण भी मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है।
(v) Define Social change.
प्रश्न – सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – सामाजिक परिवर्तन वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप समाज की संरचना, मूल्य, परंपराएँ, व्यवहार और संस्थाओं में समय के साथ परिवर्तन होता है। यह आर्थिक, तकनीकी, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक कारकों से प्रभावित होता है। सामाजिक परिवर्तन समाज को नई परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में सहायता करता है और विकास की दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है।
Q (vi) Differentiate gender and sex.
प्रश्न – लिंग और सेक्स (यौन) में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – सेक्स जैविक विशेषता है, जो जन्म से निर्धारित होती है—जैसे पुरुष और महिला। इसमें शरीर संरचना, हार्मोन और प्रजनन अंग शामिल हैं। दूसरी ओर, लिंग (Gender) सामाजिक व सांस्कृतिक निर्माण है, जिसके अंतर्गत भूमिकाएँ, अपेक्षाएँ और व्यवहार आते हैं। सेक्स प्राकृतिक है, जबकि Gender समाज द्वारा निर्मित और परिवर्तनीय होता है।
Q (vii) Shade light on Ladly. Lakshmi Yojna.
प्रश्न – लाडली लक्ष्मी योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -लाड़ली लक्ष्मी योजना मध्यप्रदेश सरकार की बालिकाओं के विकास हेतु संचालित प्रमुख योजना है। इसका उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या रोकना, शिक्षा को बढ़ावा देना और बालिकाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। जन्म से लेकर उच्च शिक्षा तक सरकार द्वारा किश्तों में आर्थिक सहायता दी जाती है। यह योजना बालिकाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक सम्मान बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Q (viii) Women as an Environment Protector.
प्रश्न – महिला एक पर्यावरण संरक्षक के रूप में।
उत्तर – महिलाएँ पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे पानी, ईंधन, भोजन और प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदार उपयोग करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ वनों की रक्षा, जल-संरक्षण और जैविक खेती में सक्रिय रहती हैं। चिपको आंदोलन जैसी पहलों में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है। वे परिवार और समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाकर सतत विकास में योगदान देती हैं।
Q (ix) Barriers in Schooling.
प्रश्न -विद्यालयीकरण में बाधाएं ।
उत्तर – विद्यालयीकरण में गरीबी, सामाजिक भेदभाव, लिंग असमानता, दूरी, परिवहन की कमी, बाल श्रम और माता-पिता की शिक्षा का अभाव प्रमुख बाधाएँ हैं। कमजोर आधारभूत संरचना, शिक्षकों की कमी और असुरक्षित वातावरण भी बच्चों को स्कूल से दूर करते हैं। विशेष रूप से लड़कियों के लिए सुरक्षा, स्वच्छ शौचालय और सामाजिक मान्यताएँ बड़ी बाधा बनती हैं।
Q (x) Plans for Gender Equality.
प्रश्न – लिंग समानता की योजनाएं ।
उत्तर – लिंग समानता हेतु सरकार और समाज कई योजनाएँ संचालित करते हैं, जैसे—बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, उज्ज्वला योजना, वन स्टॉप सेंटर, और महिला हेल्पलाइन। इन योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और आर्थिक अवसरों में महिलाओं को समान अधिकार देना है। इनसे महिलाओं की भागीदारी और सशक्तिकरण बढ़ता है।
Section-B / खण्ड-ब
(Short Answer Type Questions)
(लघु उत्तरीय प्रश्न)
Note: Attempt all questions. Give Answer of each question in about 200 words:
सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए। 8×5=40
Q 2. What is the role of culture in equality of education?
प्रश्न -समानता की शिक्षा में संस्कृति की क्या भूमिका है?
उत्तर –
भूमिका:
समानता की शिक्षा का उद्देश्य सभी छात्रों को समान अवसर एवं सम्मान प्रदान करना है। इस संदर्भ में संस्कृति एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में कार्य करती है। भारतीय संस्कृति में “वसुधैव कुटुम्बकम” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” जैसे मूल्य समानता के आधार को मजबूत करते हैं। शिक्षा में संस्कृति का समावेश बच्चों को विविधता में एकता, सामूहिकता और समावेशिता का पाठ सिखाता है।
समानता की शिक्षा में संस्कृति की क्या भूमिका
संस्कृति बच्चों के दृष्टिकोण, आदतों, भाषा और मूल्यों को आकार देती है। जब विद्यालय विभिन्न संस्कृतियों को स्वीकार करता है, तो वहाँ भेदभाव कम होता है और समान अवसर बढ़ते हैं।
शिक्षक विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले बच्चों की जरूरतों को समझकर शिक्षण में बदलाव करते हैं। इससे प्रत्येक विद्यार्थी को अपने स्तर पर सीखने का मौका मिलता है।
पाठ्यक्रम में विविध संस्कृतियों की कहानियाँ, परंपराएँ और गतिविधियाँ शामिल करने से विद्यार्थियों में सम्मान, सहयोग और सहिष्णुता की भावना बढ़ती है।
सांस्कृतिक समझ विद्यालय के वातावरण को सकारात्मक बनाती है, जिससे लिंग, जाति, धर्म या भाषा के आधार पर होने वाला भेदभाव कम होता है। इस प्रकार सांस्कृतिक जागरूकता के माध्यम से समानता की शिक्षा मजबूत होती है।
निष्कर्ष
अंत में कहा जा सकता है कि संस्कृति समानता आधारित शिक्षा की आधारशिला है। यह बच्चों के बीच सम्मान, स्वीकार्यता और सहयोग की भावना पैदा करती है। संस्कृति को ध्यान में रखकर दी गई शिक्षा न केवल समावेशी होती है, बल्कि सभी विद्यार्थियों को समान अवसर प्रदान करके सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा देती है।
OR / अथवा
Q. Shade light on Sex Education.
प्रश्न – यौन शिक्षा पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर –
भूमिका:
यौन शिक्षा आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह विद्यार्थियों को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावनात्मक परिवर्तनों को सही रूप से समझने में सहायता करती है। किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों के कारण विद्यार्थियों में जिज्ञासाएँ बढ़ती हैं, जिन्हें वैज्ञानिक और नैतिक दृष्टिकोण से संतुलित दिशा प्रदान करना आवश्यक है।
विस्तार:
यौन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को सुरक्षा, स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों से जोड़ना है। यह प्रजनन तंत्र, यौन स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, सुरक्षित व्यवहार, व्यक्तिगत मर्यादा, अनुशासन और दुव्र्यवहार से बचाव संबंधी ज्ञान प्रदान करती है। इसके माध्यम से किशोर सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करते हैं और मिथकों, भ्रांतियों तथा गलत जानकारियों से बचते हैं। विद्यालय में प्रशिक्षित शिक्षक, परामर्शदाता तथा उपयुक्त शैक्षिक सामग्री इसके प्रभावी संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यौन शिक्षा बच्चों को ‘ना’ कहने की क्षमता, आत्म-सुरक्षा कौशल और ऑनलाइन सुरक्षा की समझ भी प्रदान करती है, जो आज के डिजिटल युग में अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष:
समग्र विकास के लिए यौन शिक्षा अनिवार्य है। यह विद्यार्थियों में जिम्मेदारी, जागरूकता और स्वस्थ व्यवहार को प्रोत्साहित करती है। उचित, आयु-उपयुक्त और मूल्य-आधारित यौन शिक्षा न केवल किशोरों को सुरक्षित बनाती है, बल्कि एक स्वस्थ और जागरूक समाज के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
Q. 3. Enumerate the causes of gender inequality.
प्रश्न – लैंगिक असमानता के कारणों का वर्णन करिये।
उत्तर –
भूमिका :
लैंगिक असमानता समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच अवसरों, संसाधनों और अधिकारों की असमान स्थिति को दर्शाती है। यह असमानता सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारणों से उत्पन्न होती है।
मुख्य कारण :
-
पारंपरिक सामाजिक मान्यताएँ – पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को कमजोर मानती है, जिससे अवसर सीमित हो जाते हैं।
-
शिक्षा में असमानता – लड़कियों की शिक्षा में बाधाएँ लैंगिक अंतर को बढ़ाती हैं।
-
आर्थिक निर्भरता – महिलाओं की आर्थिक निर्भरता निर्णय लेने की शक्ति को कम करती है।
-
रूढ़िवादी सांस्कृतिक प्रथाएँ – दहेज, बाल विवाह, घरेलू भूमिकाओं का निर्धारण आदि असमानता को बनाए रखते हैं।
-
रोज़गार में भेदभाव – समान कार्य के लिए असमान वेतन तथा उन्नति के अवसरों की कमी।
-
कानूनी और प्रशासनिक कमियाँ – कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की कमी से असमानता बनी रहती है।
निष्कर्ष :
लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, सामाजिक जागरूकता और समान अधिकारों की सुनिश्चितता आवश्यक है। समान भागीदारी वाला समाज ही वास्तविक विकास की ओर अग्रसर होता है।
OR / अथवा
Q. Mention the factors influencing Socialization?
प्रश्न – समाजीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – समाजीकरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं—
(1) परिवार: बच्चे का पहला समाजीकरण केंद्र, जहाँ भाषा, व्यवहार और मूल्य सीखता है।
(2) विद्यालय: अनुशासन, सहयोग, नियमों का पालन और सामाजिक कौशल का विकास।
(3) सहपाठी समूह: मित्रों से व्यवहार, समूह-भूमिकाएँ और सामाजिक मानदंडों का ज्ञान।
(4) मीडिया: टीवी, मोबाइल, इंटरनेट से विचार, दृष्टिकोण और व्यवहार प्रभावित होते हैं।
Q. 4. What is the role of women in Environmental Protection?
प्रश्न – पर्यावरणीय संरक्षण में महिलाओं की क्या भूमिका है?
उत्तर –
भूमिका:
पर्यावरणीय संरक्षण आज की प्रमुख वैश्विक आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और सतत विकास में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। गृहस्थी और समाज दोनों में महिलाएँ सीधे प्रकृति से जुड़ी होती हैं, इसलिए पर्यावरण संरक्षण के प्रत्येक स्तर पर उनका योगदान विशिष्ट और प्रभावी है।
पर्यावरणीय संरक्षण में महिलाओं की भूमिका-
महिलाएँ जल, ऊर्जा और खाद्य सामग्री जैसे संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करती हैं, जिससे संरक्षण की संस्कृति विकसित होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में वे जल-संरक्षण, वनीकरण और स्वच्छता अभियानों में सक्रिय रहती हैं। चिपको आंदोलन जैसे ऐतिहासिक उदाहरणों ने सिद्ध किया है कि महिलाओं की सहभागिता पर्यावरण आंदोलनों को सशक्त दिशा प्रदान करती है। विद्यालयों और समुदायों में महिलाएँ पर्यावरण-शिक्षा, कचरा प्रबंधन, जैविक खेती, पौधरोपण, और प्लास्टिक-मुक्त अभियान जैसी गतिविधियों का नेतृत्व करती हैं। शहरी क्षेत्रों में भी महिलाएँ ऊर्जा-संरक्षण, पुनर्चक्रण और स्वच्छ परिवेश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी जागरूकता नई पीढ़ी में पर्यावरणीय नैतिकता विकसित करने में मदद करती है।
निष्कर्ष:
सतत विकास के लिए महिलाओं की सहभागिता अनिवार्य है। उनकी संवेदनशीलता, व्यवहारिक दृष्टिकोण और नेतृत्व क्षमता पर्यावरणीय संरक्षण को प्रभावी बनाते हैं। यदि महिलाओं को अधिक शिक्षा, प्रशिक्षण और अवसर उपलब्ध कराए जाएँ, तो पर्यावरण संरक्षण के प्रयास और अधिक सफल और व्यापक बन सकते हैं।
OR / अथवा
Q. Shade light on the Women Empowerment.
प्रश्न – महिला सशक्तिकरण पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर –
भूमिका:
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा शैक्षिक रूप से सक्षम बनाना, ताकि वे अपने जीवन से जुड़े निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकें। समाज के संतुलित विकास के लिए महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य है। इसलिए आधुनिक शिक्षा और नीतियाँ महिला सशक्तिकरण को विशेष प्राथमिकता देती हैं।
महिला सशक्तिकरण-
महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, समान अधिकार, सुरक्षा और नेतृत्व को बढ़ावा देना शामिल है। शिक्षा महिलाओं को आत्मविश्वासी बनाती है और वे अपने अधिकारों, कर्तव्यों तथा संभावनाओं को बेहतर ढंग से समझ पाती हैं। आर्थिक सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाएँ स्वावलंबी होती हैं तथा परिवार और समाज में निर्णय लेने में सक्षम बनती हैं। सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रम—जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, स्वयं सहायता समूह, महिला आरक्षण और कौशल विकास—महिला सशक्तिकरण को मजबूती प्रदान करते हैं। डिजिटल तकनीक और ऑनलाइन शिक्षा ने भी महिलाओं को नए अवसर प्रदान किए हैं। सामाजिक स्तर पर लैंगिक समानता और सुरक्षित वातावरण सशक्तिकरण की नींव को मजबूत बनाते हैं।
निष्कर्ष:
महिला सशक्तिकरण न केवल महिलाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि पूरे समाज को प्रगतिशील बनाता है। जब महिलाएँ शिक्षित, जागरूक और स्वावलंबी बनती हैं, तब वे परिवार, समुदाय और राष्ट्र निर्माण में प्रभावी योगदान देती हैं। इसलिए महिला सशक्तिकरण सतत, समावेशी और विकसित समाज की आधारशिला है।
Q. 5. How the curriculum is helpful in gender sensitization. Explain with examples.
प्रश्न -पाठ्यक्रम किस प्रकार से जेण्डर संवेदनशील बनाने में सहायक है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए ।
उत्तर –
भूमिका:
जेंडर संवेदनशीलता का तात्पर्य है लड़के–लड़की के बीच समान अवसर, सम्मान और व्यवहार सुनिश्चित करना। शिक्षा प्रणाली विशेषकर पाठ्यक्रम, इस संवेदनशीलता को विकसित करने का प्रमुख माध्यम है। एक संतुलित और समावेशी पाठ्यक्रम विद्यार्थियों में समानता के मूल्य और रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़ने की क्षमता विकसित करता है।
पाठ्यक्रम किस प्रकार से जेण्डर संवेदनशील बनाने में सहायक है-
जेंडर-संवेदनशील पाठ्यक्रम में ऐसी सामग्री शामिल की जाती है जो दोनों लिंगों को समान रूप से प्रस्तुत करे। पाठ्यपुस्तकों में महिला और पुरुष दोनों को विभिन्न भूमिकाओं में दिखाना—जैसे महिला वैज्ञानिक, महिला सैनिक या पुरुष नर्स—रूढ़िगत धारणाओं को कमजोर करता है। गतिविधि-आधारित शिक्षा, समूह कार्य और चर्चा के माध्यम से विद्यार्थियों को समान रूप से भागीदारी के अवसर मिलते हैं। स्कूल की दिनचर्या, खेल, कला तथा परियोजना कार्य भी जेंडर-संवेदनशीलता विकसित करने में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि विज्ञान पुस्तक में कल्पना चावला या मैरी क्यूरी के योगदान को उजागर किया जाए और सामाजिक विज्ञान में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका को महत्व दिया जाए, तो विद्यार्थी महिलाओं की क्षमताओं को नए दृष्टिकोण से समझते हैं। शिक्षक भी समान भाषा, निष्पक्ष प्रोत्साहन और पूर्वाग्रह-रहित व्यवहार द्वारा पाठ्यक्रम को जेंडर-संवेदनशील बनाते हैं।
निष्कर्ष:
एक जेंडर-संवेदनशील पाठ्यक्रम विद्यार्थियों में समानता, सम्मान और न्याय के मूल्य स्थापित करता है। यह उन्हें भेदभाव-मुक्त सोच विकसित करने में सहायता करता है और समावेशी समाज के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होता है।
OR / अथवा
Q. Describe the negative role of Media in Wom-en Empowerment.
प्रश्न -महिला सशक्तिकरण में मीडिया की नकारात्मक भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर –
भूमिका:
महिला सशक्तिकरण में मीडिया एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है, क्योंकि यह समाज के विचारों और दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। लेकिन कई बार मीडिया अपनी प्रस्तुतियों, विज्ञापनों और समाचारों के माध्यम से महिलाओं की गलत, विकृत या रूढ़िबद्ध छवि प्रस्तुत करता है, जिससे सशक्तिकरण की प्रक्रिया बाधित होती है।
महिला सशक्तिकरण में मीडिया की नकारात्मक भूमिका–
मीडिया अक्सर महिलाओं को सौंदर्य, दिखावे और मनोरंजन की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे उनकी वास्तविक योग्यता और क्षमता पीछे छूट जाती है। विज्ञापनों में महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों तक सीमित दिखाना पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को मजबूत करता है। समाचारों में महिलाओं से जुड़े अपराधों को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे भय और असुरक्षा की भावना बढ़ती है। फिल्मों और धारावाहिकों में कभी-कभी महिलाओं को कमजोर, निर्भर या भावनात्मक रूप से अस्थिर दिखाया जाता है, जो समाज में नकारात्मक संदेश फैलाता है। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, साइबरबुलिंग और अपमानजनक टिप्पणियाँ भी महिलाओं के आत्मविश्वास को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार मीडिया कई बार सशक्तिकरण के बजाय महिलाओं की छवि को सीमित और पक्षपाती रूप में प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष:
मीडिया की नकारात्मक भूमिका महिला सशक्तिकरण की दिशा में बाधाएँ उत्पन्न करती है। आवश्यक है कि मीडिया जिम्मेदारीपूर्ण, संतुलित और सकारात्मक प्रस्तुतियों के माध्यम से महिलाओं की वास्तविक क्षमता, उपलब्धियाँ और योगदान को उजागर करे, ताकि समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिल सके।
Q. 6. What are the provisions in National Education Policy NEP 2020 to empower the Women?
प्रश्न – राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में महिला सशक्तिकरण के क्या प्रावधान हैं?
उत्तर –
भूमिका:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP-2020) शिक्षा व्यवस्था को अधिक समावेशी, समानता-आधारित और संवेदनशील बनाने पर बल देती है। इसमें महिला शिक्षार्थियों को शिक्षा में पूर्ण भागीदारी दिलाने तथा उन्हें सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में महिला सशक्तिकरण के क्या प्रावधान-
NEP-2020 में “लैंगिक समावेशन कोष” (Gender-Inclusion Fund) की व्यवस्था की गई है, जिसका उद्देश्य लड़कियों और वंचित समूहों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। नीति विद्यालयों में सुरक्षित, सहयोगी और लैंगिक-संवेदनशील वातावरण सुनिश्चित करने पर जोर देती है। इसमें छात्रावास, परिवहन सुविधा तथा स्वच्छ शौचालय जैसी व्यवस्थाएँ विशेष रूप से लड़कियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं।
इसके साथ ही, नीति जीवन-कौशल, स्वास्थ्य एवं लैंगिक समानता आधारित विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करके लड़कियों में आत्मविश्वास, नेतृत्व व निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने पर बल देती है। महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ाने, STEM क्षेत्रों में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने तथा डिजिटल साक्षरता के अवसर प्रदान करने पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। उच्च शिक्षा में लचीलापन, बहुविकल्पीय प्रवेश–निकास तथा छात्रवृत्तियाँ भी महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती हैं।
निष्कर्ष:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 महिला सशक्तिकरण को शिक्षा सुधारों का केंद्रीय तत्व मानती है। इसके प्रावधान लड़कियों को सुरक्षित, समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराते हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर, शिक्षित और समाज में सक्रिय भूमिका निभाने में सक्षम बन सकें।
OR / अथवा
Q. Explain the Janani Suraksha Yojana.
प्रश्न – जननी सुरक्षा योजना की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर –
भूमिका:
जननी सुरक्षा योजना (JSY) भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण सुरक्षित मातृत्व योजना है, जिसे 2005 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत शुरू किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना तथा प्रसव के दौरान होने वाली मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। यह योजना विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर, ग्रामीण एवं वंचित वर्ग की गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने पर केंद्रित है।
जननी सुरक्षा योजना-
जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में प्रसव कराने पर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता परिवहन, देखभाल और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं पर आने वाले खर्च को पूरा करने में मदद करती है। योजना में ASHA कार्यकर्ता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; उन्हें गर्भवती महिला को स्वास्थ्य केंद्र तक लाने, प्रसवोपरांत देखभाल तथा टीकाकरण में सहयोग करने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
यह योजना उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था, एनीमिया, कुपोषण व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं वाली महिलाओं को समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराकर सुरक्षित मातृत्व सुनिश्चित करती है। JSY ने ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे मातृ मृत्यु दर (MMR) और शिशु मृत्यु दर (IMR) में कमी आई है।
निष्कर्ष:
जननी सुरक्षा योजना मातृ स्वास्थ्य सुधार में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुई है। आर्थिक सहायता, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और ASHA कार्यकर्ताओं की भागीदारी के माध्यम से यह योजना सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देती है और महिलाओं को स्वस्थ मातृत्व की दिशा में सशक्त बनाती है।
Section-C/ खण्ड-स
(Long Answer Type Questions) (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
Note: Attempt any two questions. Give an-swer of each question in about 500 words.
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए । प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए। 15×2 = 30
Q. 7. What is Socialization? How Education can be used as an effective instrument of socialization ?
प्रश्न – समाजीकरण क्या है? समाजीकरण के प्रभावशाली साधन के रूप में शिक्षा का उपयोग कैसे हो सकता है?
उत्तर –
भूमिका
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज के मूल्यों, मानदंडों, परंपराओं, व्यवहारों और जीवनशैली को सीखता है। जन्म से लेकर जीवन भर चलने वाली यह प्रक्रिया मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी बनाती है। समाजीकरण व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण, सांस्कृतिक विकास और सामाजिक सहभागिता के लिए अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा इस प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाती है, क्योंकि विद्यालय, शिक्षक, पाठ्यचर्या और साथियों के माध्यम से बच्चे व्यवस्थित रूप से सामाजिक व्यवहार सीखते हैं तथा समाज में समायोजन योग्य बनते हैं।
1. समाजीकरण का अर्थ और महत्त्व
समाजीकरण का अर्थ है—समाज द्वारा निर्धारित मूल्य, आदर्श, विश्वास, भाषा, कौशल, और भूमिकाओं को सीखने की सतत प्रक्रिया। यह व्यक्ति को बताता है कि समाज में कैसे रहना है, दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना है, और सामाजिक अपेक्षाओं को कैसे पूरा करना है। समाजीकरण के माध्यम से ही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास करता है, आत्म-छवि बनाता है और सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाना सीखता है।
2. समाजीकरण के प्रभावशाली साधन के रूप में शिक्षा
शिक्षा समाजीकरण का सबसे सशक्त माध्यम है, क्योंकि यह औपचारिक रूप से व्यक्ति को ज्ञान, कौशल और सामाजिक व्यवहार प्रदान करती है। शिक्षा द्वारा समाजीकरण निम्न तरीकों से होता है—
(क) विद्यालय एक समाजीकरण केंद्र
विद्यालय बच्चे को घर के बाहर पहला सामाजिक वातावरण प्रदान करता है। यहाँ बच्चे विविध पृष्ठभूमि के साथियों से मिलते हैं, जिससे सहकार्य, सामूहिकता, और सामाजिक समरसता विकसित होती है। विद्यालय में समय-पालन, अनुशासन, जिम्मेदारी, नेतृत्व और टीम वर्क जैसे सामाजिक गुण स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं।
(ख) शिक्षक – समाजीकरण के मार्गदर्शक
शिक्षक बच्चों के लिए आदर्श (Role Model) होते हैं। उनकी भाषा, व्यवहार, अनुशासन और दृष्टिकोण बच्चों पर स्थायी प्रभाव डालते हैं। शिक्षक छात्रों को नैतिक मूल्यों, नैतिक निर्णय, सहानुभूति, समानता, और सहयोग की भावना विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं।
(ग) पाठ्यचर्या और सह-शैक्षिक गतिविधियाँ
पाठ्यचर्या के माध्यम से नागरिकता, लोकतंत्र, अधिकार-कर्तव्य, लैंगिक समानता और सामाजिक मूल्यों का शिक्षण किया जाता है। सह-शैक्षिक गतिविधियाँ जैसे खेल, वाद-विवाद, समूह-कार्य, नाटक और समाजसेवा छात्रों को सामाजिक व्यवहार सीखने में मदद करती हैं।
(घ) मूल्य शिक्षा और नैतिक शिक्षा
विद्यालय मूल्यशिक्षा के माध्यम से बच्चों में ईमानदारी, करुणा, सत्यनिष्ठा, सम्मान, सह-अस्तित्व और शांति जैसे सार्वभौमिक मूल्य विकसित करता है। यह समाजीकरण को अधिक प्रभावी बनाता है।
(ड़) समावेशी शिक्षा और सामाजिक सामंजस्य
समावेशी शिक्षा विविधता में एकता का अनुभव कराती है। विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, क्षमता और सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे एक साथ पढ़ते हैं, जिससे सहिष्णुता, समानता और सामाजिक संवेदनशीलता का विकास होता है।
निष्कर्ष
अतः स्पष्ट है कि समाजीकरण व्यक्ति के व्यक्तित्व और सामाजिक जीवन के निर्माण की आधारभूत प्रक्रिया है। शिक्षा इस प्रक्रिया को संरचित, सुनियोजित और उद्देश्यपूर्ण बनाकर बच्चों को एक जिम्मेदार, संवेदनशील और जागरूक नागरिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विद्यालय, शिक्षक, पाठ्यचर्या और गतिविधियाँ मिलकर शिक्षा को समाजीकरण का सबसे शक्तिशाली साधन बनाती हैं। सच कहा जाए तो एक सुशिक्षित समाज ही सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत समाज का निर्माण कर सकता है।
Q. 8. What is the Waste Management? What is the role of Women in waste management as a worker?
प्रश्न – अपशिष्ट प्रबंधन क्या है? अपशिष्ट प्रबंधन में एक कार्यकर्ता के रूप में महिलाओं की क्या भूमिका है?
उत्तर –
भूमिका
वर्तमान समाज में अपशिष्ट एक गंभीर पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्या बन चुका है। शहरीकरण, उपभोक्तावाद, प्लास्टिक की बढ़ती मात्रा और औद्योगिक गतिविधियों के कारण कचरे का उत्पादन प्रतिदिन बढ़ रहा है। यदि इसे वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित न किया जाए, तो भूमि, जल और वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है। अपशिष्ट प्रबंधन न केवल स्वच्छता बनाए रखने का साधन है, बल्कि सतत विकास का आधार भी है। इस प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे परिवार, समुदाय और कार्यस्थल में स्वच्छता, पुनर्चक्रण तथा पर्यावरण सुधार से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होती हैं। एक कार्यकर्ता के रूप में महिलाएँ समाज में जागरूकता बढ़ाने, व्यवहार परिवर्तन लाने और अपशिष्ट प्रबंधन के विभिन्न चरणों को सफल बनाने में अहम योगदान देती हैं।
विस्तार
1. अपशिष्ट प्रबंधन का अर्थ
अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) उस संपूर्ण प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसके अंतर्गत घरेलू, औद्योगिक, कृषि एवं चिकित्सा अपशिष्ट का संग्रह, अलगाव, परिवहन, उपचार, पुनर्चक्रण और सुरक्षित निपटान किया जाता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण को कम करना, संसाधनों का संरक्षण करना और समाज में स्वच्छता की स्थिति को बेहतर बनाना है।
मुख्य चरण—
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स्रोत पर कचरे का पृथक्करण
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संग्रह और परिवहन
-
पुनर्चक्रण, कंपोस्टिंग और पुन: उपयोग
-
सुरक्षित निपटान (लैंडफिल आदि)
2. अपशिष्ट प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका
(i) घर-परिवार स्तर पर प्रबंधन
महिलाएँ घरों में अपशिष्ट प्रबंधन की मूल आधारशिला हैं। वे गीले–सूखे कचरे का पृथक्करण, रसोई अपशिष्ट से कंपोस्ट तैयार करना, प्लास्टिक का कम उपयोग, और पुन: उपयोग जैसी गतिविधियों को नियमित रूप से अपनाती हैं। उनका यह योगदान घरों में कचरे की मात्रा कम करता है तथा परिवार को स्वच्छता के प्रति प्रेरित करता है।
(ii) सामुदायिक नेतृत्व
महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों, पंचायत समितियों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से समुदाय को स्वच्छता गतिविधियों से जोड़ती हैं। वे मोहल्ला सफाई अभियान, कचरा पृथक्करण प्रशिक्षण, प्लास्टिक मुक्त अभियान और कंपोस्टिंग केंद्रों के संचालन जैसी जिम्मेदारियाँ निभाती हैं। सामुदायिक स्तर पर उनका नेतृत्व व्यवहार परिवर्तन में अत्यंत प्रभावी होता है।
(iii) कार्यकर्ता एवं रीसाइक्लिंग कर्मी के रूप में भूमिका
कई महिलाएँ शहरों और कस्बों में कचरा संग्रह, छंटाई और पुनर्चक्रण उद्योगों से जुड़ी हैं। वे प्लास्टिक, धातु, कागज आदि के पृथक्करण में विशेष दक्षता रखती हैं, जिससे पुनर्चक्रण उद्योग को महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है। यह न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(iv) पर्यावरण जागरूकता का प्रसार
महिलाएँ परिवार एवं समुदाय में जागरूकता की वाहक होती हैं। वे बच्चों को पर्यावरणीय आदतें सिखाती हैं, जैसे पानी बचाना, प्लास्टिक का सीमित उपयोग, कंपोस्टिंग आदि। साथ ही, स्कूलों और सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लेकर स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाती हैं।
(v) स्वच्छता अभियानों में सहभागिता
“स्वच्छ भारत मिशन” और विभिन्न नगर निगम कार्यक्रमों में महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय रहा है। वे स्वच्छता दूत, आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सेविका और पंचायत प्रतिनिधि के रूप में स्वच्छता संदेश को जन-जन तक पहुँचाती हैं।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः, अपशिष्ट प्रबंधन आधुनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। तकनीकी साधनों के साथ-साथ सामाजिक सहभागिता भी इसकी सफलता के लिए आवश्यक है। एक कार्यकर्ता के रूप में महिलाएँ अपशिष्ट प्रबंधन में नेतृत्व, जागरूकता तथा क्रियान्वयन—तीनों स्तरों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी सक्रिय भागीदारी से स्वच्छ, सुरक्षित और पर्यावरण-मित्र समाज का निर्माण संभव होता है।
Q. 9. What is the meaning of Mass Media? Explain the role of Mass Media in gender inequality.
प्रश्न -जनसंचार माध्यम का क्या अर्थ है? लैंगिक असमानता में जन संचार माध्यमों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर –
भूमिका
आधुनिक समाज में जनसंचार माध्यम (Mass Media) जानकारी, विचारों और दृष्टिकोणों को व्यापक स्तर पर पहुँचाने का सबसे प्रभावी माध्यम है। टीवी, रेडियो, अख़बार, सिनेमा, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि जनता की सोच, व्यवहार और सामाजिक दृष्टि को प्रभावित करते हैं। लैंगिक असमानता जैसी सामाजिक समस्या के निर्माण तथा उसके समाधान, दोनों में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सही दिशा में प्रयुक्त होने पर मीडिया सामाजिक परिवर्तन का सशक्त साधन बन सकता है, जबकि नकारात्मक प्रस्तुतीकरण लैंगिक भेदभाव को बढ़ा भी सकता है।
1. जनसंचार माध्यम का अर्थ
जनसंचार माध्यम उन साधनों को कहते हैं जिनके माध्यम से संदेश, सूचनाएँ, विचार और मनोरंजन व्यापक जनसमूह तक एक साथ पहुँचते हैं।
मुख्य जनसंचार माध्यम —
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टीवी और रेडियो
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समाचारपत्र और पत्रिकाएँ
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सिनेमा
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इंटरनेट, सोशल मीडिया (YouTube, Facebook, Instagram आदि)
ये माध्यम सामाजिक धारणाओं, आदतों और मान्यताओं को आकार देते हैं, इसलिए इनका प्रभाव अत्यंत व्यापक और गहरा होता है।
2. लैंगिक असमानता में जनसंचार माध्यमों की नकारात्मक भूमिका
(i) रूढ़िबद्ध छवियों का प्रसार
मीडिया अक्सर पुरुषों को मजबूत, निर्णयकर्ता और नायक के रूप में दिखाता है, जबकि महिलाओं को गृहिणी, कमजोर, सुंदरता-केंद्रित या भावुक रूप में प्रस्तुत करता है। इससे समाज में लैंगिक रूढ़िबद्धता सुदृढ़ होती है और स्त्री-पुरुष की भूमिकाएँ सीमित हो जाती हैं।
(ii) वस्तुकरण (Objectification)
विज्ञापनों एवं फिल्मों में महिलाओं को उपभोक्ता-वस्तु की तरह प्रस्तुत करना उनकी गरिमा को कमजोर करता है और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देता है।
(iii) करियर भूमिकाओं का असमान चित्रण
मीडिया पुरुषों को इंजीनियर, वैज्ञानिक, नेता, अधिकारी आदि रूप में अधिक दिखाता है, जबकि महिलाओं को शिक्षक, नर्स, गृहिणी जैसी भूमिकाओं में। इससे व्यावसायिक रूढ़िबद्धता बढ़ती है।
(iv) हिंसा और भेदभाव का सामान्यीकरण
कुछ धारावाहिकों और फिल्मों में दहेज, बाल विवाह, घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं को सामान्य रूप में दिखाया जाता है, जो समाज की सोच को प्रभावित करता है।
3. लैंगिक समानता को बढ़ाने में मीडिया की सकारात्मक भूमिका
(i) जागरूकता अभियान
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “सशक्त नारी”, “महिला सुरक्षा” जैसे सरकारी अभियान मीडिया के माध्यम से पूरे देश में पहुँचते हैं। इससे समाज में सकारात्मक संदेश फैलता है।
(ii) प्रेरणादायक कहानियों का प्रसारण
खेल, विज्ञान, सेना, राजनीति आदि क्षेत्रों में सफल महिलाओं की जीवनी, उपलब्धियाँ और संघर्ष की कहानियाँ प्रसारित करके मीडिया रूढ़िबद्धता को तोड़ने में सहायता करता है।
(iii) कानूनी जानकारी का प्रसार
घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, समान वेतन कानून जैसे अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाकर मीडिया महिलाओं को सशक्त बनाता है।
(iv) सामाजिक विमर्श तैयार करना
टीवी डिबेट, वेब सीरीज़, डॉक्यूमेंट्री और सोशल मीडिया कैम्पेन लैंगिक समानता पर चर्चा को बढ़ावा देते हैं, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों में संवेदनशीलता विकसित होती है।
निष्कर्ष
जनसंचार माध्यम समाज का दर्पण भी है और सामाजिक परिवर्तन का साधन भी। यदि मीडिया लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली रूढ़ छवियाँ दिखाता है, तो यह भेदभाव को मजबूत करता है। वहीं, समानता, सम्मान, स्वतंत्रता और सशक्तिकरण को केंद्र में रखकर प्रस्तुतियाँ तैयार की जाएँ, तो मीडिया महिला-पुरुष दोनों के लिए न्यायपूर्ण और प्रगतिशील समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए आवश्यक है कि मीडिया जिम्मेदारीपूर्वक कार्य करे और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाला सकारात्मक वातावरण तैयार करे।
Q. 10. Define the gender stereotyping. Give the measures to end stereotyping.
प्रश्न -लैंगिक रूढ़िबद्धता को परिभाषित कीजिए। रूढ़िबद्धता की समाप्ति के उपाय बताइये |
उत्तर –
भूमिका
समाज में स्त्री और पुरुष के लिए निश्चित की गई पारंपरिक भूमिकाएँ, अपेक्षाएँ और व्यवहार को लैंगिक रूढ़िबद्धता कहा जाता है। ऐसी धारणाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं, मीडिया और पारिवारिक व्यवहार के माध्यम से व्यक्तियों में स्थापित हो जाती हैं। इसके कारण दोनों लिंग अपनी वास्तविक क्षमताओं को विकसित नहीं कर पाते और सामाजिक समानता बाधित होती है। शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य इन रूढ़ धारणाओं को चुनौती देकर एक न्यायपूर्ण एवं समानतामूलक समाज का निर्माण करना है।
विस्तार
1. लैंगिक रूढ़िबद्धता की परिभाषा
लैंगिक रूढ़िबद्धता (Gender Stereotyping) उन स्थायी, कठोर और पारंपरिक विचारों को कहा जाता है जिनके आधार पर यह तय किया जाता है कि स्त्री-पुरुष को कैसे व्यवहार करना चाहिए, कौन-से कार्य उनके लिए उपयुक्त हैं और समाज में उनकी क्या भूमिकाएँ होंगी।
उदाहरण:
-
पुरुष को बलवान, नेतृत्वकर्ता और कमाऊ मानना।
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महिला को कोमल, पालन-पोषण करने वाली और गृहकार्य तक सीमित समझना।
ये धारणाएँ व्यक्तियों की स्वतंत्रता, शिक्षा, रोजगार व सामाजिक सहभागिता पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
2. लैंगिक रूढ़िबद्धता के दुष्परिणाम
-
शैक्षिक असमानता: विज्ञान, गणित या तकनीकी विषयों को लड़कों के लिए उपयुक्त मानना और लड़कियों को कलात्मक या घरेलू गतिविधियों तक सीमित करना।
-
व्यावसायिक सीमाएँ: महिलाएँ परंपरागत भूमिकाओं में, जबकि पुरुष नेतृत्व भूमिकाओं में अधिक दिखाए जाते हैं, जिससे रोजगार में लैंगिक अंतर पैदा होता है।
-
आत्मविश्वास पर प्रभाव: रूढ़ धारणाएँ बच्चों के आत्म-सम्मान और व्यक्तिगत विकास को बाधित करती हैं।
-
सामाजिक भेदभाव: दहेज, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, स्त्री-भ्रूण हत्या जैसी समस्याएँ इसी मानसिकता से उत्पन्न होती हैं।
3. लैंगिक रूढ़िबद्धता की समाप्ति के उपाय
(i) शिक्षा द्वारा परिवर्तन
-
पाठ्यपुस्तकों में लैंगिक-समानता युक्त उदाहरण व चित्र शामिल किए जाएँ।
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शिक्षक कक्षा में लड़के–लड़कियों को समान अवसर, प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता और नेतृत्व भूमिकाएँ दें।
-
सहशिक्षा, परियोजना कार्य और खेल गतिविधियाँ रूढ़ धारणाओं को तोड़ने में प्रभावी होती हैं।
(ii) परिवार में समानता
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बच्चों को समान संसाधन, स्वतंत्रता और जिम्मेदारियाँ देना आवश्यक है।
-
घरेलू कार्यों में लड़के–लड़कियों दोनों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
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अभिभावक अपनी भाषा और व्यवहार से समानता का संदेश दें।
(iii) मीडिया का सकारात्मक उपयोग
-
फिल्मों, विज्ञापनों और टीवी कार्यक्रमों में महिला-पुरुष दोनों को समान और सशक्त रूप में प्रस्तुत किया जाए।
-
सफल महिलाओं और पुरुषों के प्रेरक उदाहरण प्रसारित किए जाएँ जो रूढ़ धारणाओं को चुनौती देते हों।
(iv) कानूनी एवं नीतिगत उपाय
-
समान वेतन कानून, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा, मातृत्व-पितृत्व अवकाश आदि नियमों का कठोर पालन हो।
-
सरकार द्वारा “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हैं।
(v) सामाजिक जागरूकता
-
स्कूलों, महाविद्यालयों और समुदायों में Gender Sensitization कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।
-
युवाओं को वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए।
निष्कर्ष
लैंगिक रूढ़िबद्धता समाज की प्रगति, समानता और व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक है। इसके उन्मूलन के लिए परिवार, विद्यालय, मीडिया, समाज और सरकार सभी की संयुक्त भूमिका आवश्यक है। जब समाज यह स्वीकार करेगा कि क्षमता लिंग पर नहीं, बल्कि अवसर और परिश्रम पर निर्भर करती है, तभी वास्तविक लैंगिक समानता और समतामूलक समाज का निर्माण संभव होगा।
Q. 11. Explain the National effort to protect Women’s Rights.
प्रश्न – महिला अधिकारों के संरक्षण में राष्ट्रीय प्रयास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर –
भूमिका
भारत में महिलाओं की स्थिति लंबे समय तक सामाजिक रूढ़ियों, लैंगिक भेदभाव और असमान अवसरों से प्रभावित रही है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और संपत्ति पर समान अधिकार प्राप्त करने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने महिला सशक्तिकरण और समानता के लिए मजबूत आधार प्रदान किया। समय के साथ सरकार और समाज ने मिलकर कई कानूनी, सामाजिक और आर्थिक पहलों के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए।
विस्तार : राष्ट्रीय प्रयास
1. संवैधानिक प्रावधान
संविधान महिलाओं के लिए समानता और सुरक्षा की सुनिश्चितता करता है—
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अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता।
-
अनुच्छेद 15(3) : महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति।
-
अनुच्छेद 16 : सरकारी सेवाओं में समान अवसर।
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अनुच्छेद 39(d) : समान कार्य के लिए समान वेतन।
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अनुच्छेद 42 : मातृत्व राहत और सुरक्षित कार्य वातावरण।
ये प्रावधान महिला अधिकार संरक्षण का आधार बनते हैं।
2. महिला सुरक्षा हेतु कानूनी उपाय
सरकार ने कई महत्वपूर्ण कानून बनाए, जिनका उद्देश्य महिलाओं को हिंसा, शोषण और भेदभाव से सुरक्षा देना है—
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दहेज निषेध अधिनियम, 1961 – दहेज प्रथा पर रोक।
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घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 – महिलाओं को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक हिंसा से सुरक्षा।
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यौन उत्पीड़न (POSH) अधिनियम, 2013 – कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा की रक्षा।
-
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 – बाल विवाह को दंडनीय अपराध घोषित।
-
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 संशोधन – पुत्रियों को समान संपत्ति अधिकार।
इन कानूनों ने महिलाओं की कानूनी स्थिति को मज़बूत बनाया।
3. सामाजिक और शैक्षिक पहल
महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक सामाजिक और शैक्षिक योजनाएँ लागू की गईं—
-
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ – बालिकाओं की शिक्षा और सुरक्षा पर बल।
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सर्व शिक्षा अभियान, महिला साक्षरता कार्यक्रम – महिला साक्षरता बढ़ाने में सहायक।
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सुकन्या समृद्धि योजना – बालिकाओं के लिए वित्तीय सुरक्षा।
इन प्रयासों से महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ।
4. आर्थिक सशक्तिकरण के प्रयास
सरकार महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देती है—
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महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) – रोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा।
-
मुद्रा योजना और स्टार्टअप इंडिया में महिला उद्यमियों को विशेष प्रोत्साहन।
-
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन – ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर।
आर्थिक सशक्तिकरण महिलाओं को निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।
5. राजनीतिक भागीदारी
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73वें और 74वें संविधान संशोधन के तहत पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण।
इससे ग्रामीण और शहरी शासन में महिलाओं का नेतृत्व बढ़ा है।
6. सुरक्षा और सहायता तंत्र
महिलाओं को संकट की स्थिति में त्वरित सहायता देने हेतु—
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महिला हेल्पलाइन (181)
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वन स्टॉप सेंटर
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निर्भया फंड
-
महिला पुलिस थानों
जैसी व्यवस्थाएँ स्थापित की गई हैं।
निष्कर्ष
महिला अधिकारों का संरक्षण देश की सामाजिक प्रगति और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा किए गए संवैधानिक, कानूनी, शैक्षिक और आर्थिक प्रयासों ने महिलाओं में जागरूकता, आत्मविश्वास और स्वावलंबन को बढ़ाया है। हालांकि सामाजिक मानसिकता में परिवर्तन अभी भी आवश्यक है, परंतु निरंतर राष्ट्रीय प्रयासों से महिला सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम उठाए जा रहे हैं। समान अधिकारों और सम्मान पर आधारित समाज ही वास्तविक विकास की पहचान है।
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